अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !!
पर्यावरण पर एक मंथन : भाग - तीन
यह कदम्ब का पेड़ अगर होता यमुना तीरे
मैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे !!
मैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे !!
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अगर देखा जाय तो दिल्ली में निष्प्राण व बेहाल यमुना को देखकर सुभद्रा कुमारी चौहान जी की ये पंक्तियाँ दुर्भाग्यवश अप्रासंगिक सी जान पड़ती हैं !!
ये दृश्य गंगा नदी का है लेकिन सोचता हूँ क्या दिल्ली में यमुना इतनी ही निर्मल व स्वच्छ दिख सकेगी !! यमुना की इलाहबाद तक की कुल 1376 किमी. तक की यात्रा के दिल्ली में यात्रा के दौरान वजीराबाद से ओखला बैरेज तक 22 किमी. की दूरी का क्षेत्र का यमुना के कुल प्रदूषण में लगभग 79 % (साभार: इण्डिया वाटर पोर्टल) का हिस्सा है. यदि इस हिस्से को गन्दगी मुक्त करने की जिम्मेदारी, राजनीतिक पूर्वाग्रहों को त्यागकर, राज्यपाल, शहरी विकास, पर्यटन मंत्री रह चुके कुशल व सख्त प्रशासक श्री जगमोहन साहब को सौंप दी जाय तो निश्चित ही निष्प्राण यमुना फिर से प्राणवान हो सकती है (व्यक्तिगत विचार). इस क्रम में विभिन्न राजनीतिक दबावों के बावजूद भी अपने काम को निर्भीकता और कुशलता से अंजाम देने वालों में पूर्व चुनाव आयुक्त टी. एन. शेषन साहब व मेट्रो एम डी. श्रीधरन साहब भी उल्लेखनीय नाम हैं.
दिलों में अपनी खूबसूरत पहचान खोती जा रही प्राकृतिक व सांस्कृतिक धरोहर, यमुना को पुनर्जीवित करने के निहितार्थ विभिन्न केंद्र सरकारों द्वारा अब तक किये गए प्रयासों में हजारों करोड़ रूपये यमुना में बहाए जा चुके हैं ! लेकिन यमुना की स्थिति बद से बदत्तर होती जा रही है !! इस कारण अब युद्ध स्तर पर प्रयास किये जाने आवश्यकता है. जिससे लन्दन की खूबसूरती बढ़ाती, टेम्स नदी की तरह यमुना भी दिल्ली की खूबसूरती में चार चाँद लगा सके और यमुना के गौरवमयी अतीत की वापसी सुनिश्चित हो सके.
गंगा और यमुना को यदि परिदृश्य से हटा दिया जाय तो हमारी संस्कृति व कृषि निष्प्राण सी लगती है. सोचता हूँ दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति के आगे कुछ भी असंभव नहीं !! अकेले टेम्स ही नहीं दुनिया की कई नदियां ऐसे ही साफ़ की गईं हैं. जर्मनी में राइन, दक्षिण कोरिया में हान और अमरीका में मिलवॉकी नदियों को दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति के बल पर ही पुनर्जीवित किया जा सका है ..
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