Monday 27 August 2018

भांड और नक्काल ...



भांड और नक्काल ...

         लोकतंत्र में हम अभिव्यक्ति की आजादी के चलते सरकार के फैसलों के प्रति खुलकर असंतोष या रोष जाहिर कर देते हैं लेकिन मुग़ल बादशाहों की निरंकुशता व क्रूरता के किस्से पढ़कर सोचता हूँ कि उस समय बादशाह के फैसलों के प्रतिकूल कहने का साहस तत्कालीन राजनीतिक व सामाजिक माहौल में हम आज भी न जुटा सकेंगे.
खैर ! अब मूल विषय पर आता हूँ.. आज बदले स्वरुप में भांड और नक्काल शब्दों को नकारात्मक या व्यंग्य रूप में प्रयोग किया जाता है लेकिन मुग़ल काल में भांड और नक्काल तहजीबी हिस्सा हुआ करते थे. ये सच्चाई का आइना दिखाते हुए मनोरंजन के साथ-साथ आम जनता को सम-सामयिक घटनाओं व अव्यवहारिक शासकीय निर्णयों पर चुटीले व्यंग्यों के माध्यम से प्रदर्शन करके हकीकत से भी वाकिफ कर जागरूक किया करते थे. जिसके कारण कभी-कभी शासक वर्ग इसने खफा हो जाता था.इस सम्बन्ध में करेला नाम के भांड का प्रसंग, जिससे खफा होकर मुहम्मद शाह रंगीला ने सभी भांडों को दिल्ली छोड़कर चले जाने का आदेश दे दिया था, सुना चुका हूँ.
बात 1754 ई.की है तब दिल्ली के तख़्त पर आलमगीर द्वितीय (1754-1759), 16 वें मुग़ल बादशाह के रूप में गद्दी नशीं था. आलमगीर द्वितीय बहुत कमजोर व्यक्ति था. प्रशासन का अनुभव न होने के कारण उसमें निर्णय लेने की क्षमता का अभाव था. जिसके कारण वह अपने वज़ीर की कठपुतली बनकर रह गया था.
बादशाह जैसी वेशभूषा पहनकर एक भांड, पुरानी दिल्ली के एक चौराहे पर अपनी मंडली के दरबारी बने साथियों के साथ नाटक करने लगा. दरबारी, बादशाह बने अपने साथी को बादशाह द्वारा लिए गलत निर्णयों के लिए कोसते हुए जोर-जोर से खूब गालियाँ भी दे रहे थे !
इतने में उधर से गुजर रहे एक सैनिक ने जब ये सब देखा तो उसने पूरी मंडली को गिरफ्तार कर बादशाह के सामने भरे दरबार में पेश किया और उनका अपराध सुनाया.
भांड को अपनी जैसी वेशभूषा में देख बादशाह को आश्चर्य हुआ ! बादशाह ने मंडली से ठीक वैसा ही दरबार में करने को कहा जैसा वे चौराहे पर कर रहे थे..
बेशक ! कमजोर ही सही ! लेकिन बादशाह तो बादशाह ही होता है ! भांड मंडली घबरा गयी ! लेकिन बादशाह का नर्म रवैया भांपकर उन्होंने और भी बढ़-चढ़ कर वही नाटक फिर से प्रस्तुत कर दिया.
नाटक देख कर बादशाह खूब हंसा और मंडली को इनाम देकर विदा किया लेकिन दरबारियों की अब शामत आ गयी ! बादशाह ने सभी दरबारियों को ये कहकर खूब लताड़ा कि जिस तरह भांड मंडली ने मुझे सच्चाई से रूबरू करवाया तुमने इस तरह कभी वास्तविकता नहीं बताई ! बस हाँ में हाँ मिलते रहे !. इसके बाद बादशाह स्वयं में सुधार करने में जुट गया. हालांकि बाद में षडयंत्र के तहत मारा गया !
इतिहास, गुजरे ज़माने की घटनाओं, जानकारियों व किस्से-कहानियों का संग्रह मात्र नहीं ! इतिहास हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है... मार्गदर्शन करता है ..



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