Monday 27 August 2018

जब तृष्णा ज्वार .....



जब तृष्णा ज्वार
प्रबल हो अतिशय
प्राणों पर संकट
आन पड़े
तब कब दिखते
प्राण मज़हब में !
जल में दिखते प्राण पड़े....
... अनहद
जोधपुर यात्रा क्रम में आग बरसाते सूरज की तपती गर्मी में बेटी और बेटे के साथ मण्डोर गार्डन से आगे काफी पैदल चलने के बाद मंडोर किले में पहुंचा. सुनसान वियावान मंडोर किले के भग्नावशेषों के अवलोकन उपरांत उत्साह में जोधपुर के राजाओं की मृत्युपरांत पंचकुंडा में बने स्मारकों ( छतरी ) पर पहुंचने का लोभ संवरण न हुआ.
रास्ता पैदल का और लंबा था . हमारे पास पानी समाप्त हो चुका था. शेष थी तो सिर्फ रीती बोतलें ! प्यास उफान पर थी. प्यास के कारण यहाँ से वापस, जहां से चले थे, मंडोर गार्डन तक वापस पहुंचने की हिम्मत शेष न थी. लक्ष्य से पहले थम जाना भी मंज़ूर न था. बस इस उम्मीद का सहारा था कि शायद मार्ग में आगे कहीं पानी मिल जाय !
लेकिन निरंतर चलते रहने के बाद भी पानी न मिला. तभी एक आस जगी ! नौ गज़ा पीर की दरगाह के पास 4-5 बड़े-बड़े मिट्टी के मटके दिखे. लेकिन एक-एक कर जब सभी मटकों के ढक्कन उठा कर देखा तो शीघ्र ही आशा निराशा में बदल गई! पांचों मटके सूखे पड़े थे.
अब तो स्थिति और भी भयानक होती जा रही थी. लेकिन अब भी लक्ष्य तक पहुंचने का ज़ज़्बा प्यास पर भारी पड़ रहा था.
काफी पैदल चलने के बाद चारों तरफ सुनसान में एक और दरगाह दिखी. यह हजरत हबीबुल्लाह मलिक शाह बुखारी तन्हा पीर बाबा की दरगाह थी. वहां आगंतुकों की काफी चहल-पहल थी. उम्मीद जगी. दरगाह के मुख्य द्वार पर एक सज्जन दिखे तो छूटते ही उनसे पानी के बारे में पूछा... दरगाह पर वाटर कूलर लगा था !
तुरंत बोतल में जल भरकर चबूतरे पर बैठकर हम तीनों ने प्यास बुझाई. हालांकि कुछ ही देर बाद विद्युत अवरोध के कारण वाटर कूलर से पानी आना बंद हो गया. लेकिन तब तक हम अपनी प्यास बुझाकर बोतलों में शेष सफर के लिए पानी भर चुके थे.
तृष्णा शांति के क्रम में हमें स्वर्गिक आनंद की अनुभूति हो रही थी. जल अमृत तुल्य लग रहा था. ऐसा लग रहा था मानों तपते रेगिस्तान में हमारे ऊपर खुदा की रहमत बरस पड़ी !
दरगाह पर हम तीनों के अलावा सभी मुस्लिम धर्मावलंबी थे. वहां बैठे बुज़ुर्ग लोगों से बहुत ही सौहार्दपूर्ण वातावरण में खुलेमन से धार्मिक व धर्म आधारित सम-सामयिक घटनाओं पर चर्चा का दौर चला. इसके बाद हम अपने गंतव्य, पंचकुंडा की ओर बढ़ चले.
यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि हमें जीवन में पहली बार व्यावहारिक रूप में अनुभव हुआ कि " जल ही जीवन है."
साथियों, आप हमारी तरह दुस्साहस न कीजियेगा... मार्ग में आने वाले संकटों को उत्साह में नजरंदाज न करें. मौसम और परिस्थितियों के अनुकूल पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित कर लेने के उपरान्त ही गंतव्य की ओर रुख करने में स्वयं की सुरक्षा है.


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