Monday, 27 August 2018

मेटकाफ फॅाली ( Metcalfe Folly)...




मेटकाफ फॅाली ( Metcalfe Folly)... 

          मेहरौली में आकर अधिकांश पर्यटक कुतुब मीनार व उससे लगे स्मारक देख कर संतुष्ट हो जाते हैं लेकिन कुतुब मीनार के पास ही और भी बहुत कुछ ऐतिहासिक है जो देखने लायक है लेकिन जानकारी के अभाव में आगंतुक उधर का रुख नहीं करते !
         तस्वीर में छतरीनुमा निर्माण, मेटकाफ फॅाली है, जिसे थॉमस मेटकाफ ने ब्रिटिश बाग़-बगीचों की तर्ज पर यहाँ भी एक ऊँचा टीला बनवाकर उस पर बनवाया था. थॉमस मेटकाफ मुग़ल दरबार में ईस्ट इंडिया कंपनी के रेजिडेंट (Agent) थे. मुग़ल सल्तनत उनके इशारों पर चलती थी. बहादुर शाह जफर नाम मात्र के बादशाह हुआ करते थे। इसलिए मेटकाफ स्वयं को मुग़ल बादशाह जैसे ठाठ-बाट में रहते हुए दिखाना चाहते थे. मेटकाफ ने मुगलों से महरौली का यह क्षेत्र, मय जो कुछ इस इलाके में था, जैसे मस्जिद, मकबरे नहर मवेशियां आदि, खरीद लिया और इस इलाके को अपने अनुसार संवारना शुरू किया.बहती छोटी नदिया का रास्ता मोड़ कर रिजवे बनवाया,ऊंचे टीले, बोट हाउस, बाग़-बगीचे आदि बनवाये.
मेटकाफ ने अकबर की दाई माँ के बेटे कुली खां के मकबरे को अपने निवास में बदल दिया था.इस कोठी में काम करने वाले भारतीय, सही उच्चारण न कर सकने के कारण मेहरौली के मेटकाफ हाउस को " मटका कोठी " कहा करते थे. मेटकाफ इसे नव विवाहित जोड़ो को हनीमून के लिए किराए पर भी दिया करते थे.
मेटकाफ द्वारा मेहरौली के इस क्षेत्र को अपनी आरामगाह के रूप में चुनने के पीछे भी एक मकसद था. दरअसल तत्कालीन मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर, लाल किले से मेहरौली में कुतुब कॅाम्लेक्स के समीप स्थित जफर महल में गर्मियों के मौसम में दो माह व्यतीत करने आते थे साथ ही जहाँनाबाद ( पुरानी दिल्ली ) के साधन सम्पन्न लोग, गर्मियों में मेहरौली आ जाया करते थे, इन पर नजर रखने के लिए मेटकाफ ने इस क्षेत्र को अपनी आरामगाह के रूप में चुना था।
मेटकाफ का सरकारी निवास पुरानी दिल्ली में " मेटकाफ हाउस " हुआ करता था लेकिन कहा जाता है कि मेटकाफ ने अपनी बेटी के साथ अधिकांश समय यहीं दिलखुशा में बिताया. पुरानी दिल्ली के मेटकाफ हाउस में उनकी पत्नी और बेटा रहा करते थे.
      वर्तमान में महरौली के आसपास के गांवों की जमीन पर अनेकों फार्म हाउस बन गए हैं मेटकाफ द्वारा संवर्धित इस क्षेत्र को महरौली का पहला फ़ार्म हाउस भी कहा जा सकता है. यहाँ मेटकाफ छुट्टियों का आनंद लेने आया करते थे. आज सम्पन्न लोगों के फार्म हाउसों तक आम आदमी का पहुंचाना सम्भव नहीं ! लेकिन मेटकाफ के दिलखुशा तक हर कोई बेरोकटोक पहुंच सकता है।
        मेटकाफ ने मेहरौली के इस क्षेत्र को नाम दिया, “ दिलखुशा “, अर्थात Delight Of The Heart. सोचता हूँ ये दिल खुशा न होकर फारसी का शब्द " दिलकुशा " "Heart enticing" रहा होगा .
         वाकई ! दिल्ली की भागम-भाग और कोलाहल भरी ज़िन्दगी से हटकर, स्वनाम "दिलखुशा" को सार्थक करती इस क्षेत्र की सुन्दरता और शातिपूर्ण वातावरण का अहसास कर . दिल खुश हो जाता है.
        1857 में जहां क्रान्तिकारियों द्वारा मेटकाफ के पुरानी दिल्ली स्थित " मेटकाफ हाउस " को बुरी तरह क्षतिग्रस्त किया गया वहीं " दिल खुशा " को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया. दिल खुशा की सुरक्षा के लिए बहादुर शाह जफर ने सुरक्षा कर्मी भी भेजे थे।



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