सोहरा (चेरापूंजी) : " विकास " की ज़द में विश्व प्रसिद्ध वर्षा क्षेत्र....
हर तरफ गर्मी बरस रही है तो क्यों न आज बादलों के घर, मेघालय में चेरापूंजी क्षेत्र की ठंडी फुहारों का आनंद लिया जाय ..प्रस्तुत यात्रा वृत्तांत 28 पृष्ठीय असम मेघालय यात्रा वृतांत का एक अंश है.
बचपन से सर्वाधिक वर्षा वाले क्षेत्र चेरापूंजी का नाम सुनता और पढता आ रहा हूँ. हमें चेरापूंजी, मेघालय पहुँचना था. मन में उत्साह और कौतुहल था. सुबह सुबह शिलॉंग से चेरापूंजी के लिए रवाना हुए. मार्ग में वर्षा होने लगी तो चेरापूंजी आना सार्थक लगने लगा. वर्षा के कारण मार्ग में एलिफैन्टा केव्स जाने का निर्णय वापसी तक के लिए स्थगित करना पड़ा.
सोहरा एक बड़ा क्षेत्र है मार्ग में एक स्थान पर भुट्टों का आनंद तेते हुए हम उमेस्टिउ व्यू पॉइंट (Umestew View Point) सोहरा, पर, प्रकृति का नज़ारा देखने के लिए रुके,
अभी भी बूंदाबांदी चल रही थी. घाटी से काफी ऊँचाई पर स्थित इस व्यू पॉइंट्स से प्रकति का विस्तृत व सुरम्य दृश्यावलोकन किया जा सकता है. अब हमारा अगला पड़ाव दुनिया में सबसे अधिक वर्षा होने वाले क्षेत्र के रूप में लम्बे समय तक दर्ज रहे गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज, चेरापूंजी, सोहरा था. हालाँकि इस समय विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाले स्थान के रूप में मावसिनराम (Mawsynram), मेघालय, वर्ष में 11,873 मिमी.के कारण जाना जाता है इस स्थान पर स्थानीय उत्पादों के विक्रय हेतु कुछ अस्थाई दुकानें थीं. कुछ आगे पैदल चलकर अब हम एक ऐसे स्थान पर पहुँच कर गर्व महसूस कर रहे थे जहाँ पर एक बोर्ड लगा था और उस पर लिखा था “ SOHRA, The Wettest Place On Earth… Proud to be here “
इस स्थान पर पहुंचकर हमारी ख़ुशी का ठिकाना न था,लेकिन यहाँ लगभग मृदा विहीन पठार और जिरोफिटिक वनस्पति देखकर आश्चर्य हुआ ! क्योंकि मेरे मन-मस्तिष्क में अधिकतम वर्षा वाले क्षेत्र में घने वन और ऊँची-ऊंची हरी भरी घास होने की कल्पना थी. इस कारण यहाँ की भौगोलिक स्थिति और परिस्थितियों को करीब से जानने की जिज्ञासा हुई.
खासी पहाड़ियों, खासी शब्द का अर्थ स्थानीय भाषा में पत्थर (STONE) से है, पर समुद्र तल से 1484 मी. की ऊँचाई पर स्थित और गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जुलाई 1861में 9,300 मिमी. तथा 1 अगस्त 1860 से 31 जुलाई 1861 के बीच 26,461 मिमी. वर्षा के कारण दो रिकॉर्ड दर्ज कराने वाले चेरापूंजी का ऐतिहासिक नाम “सोहरा” है. 1884 में इस कबीलाई क्षेत्र पर अंग्रेजों द्वारा अधिकार के बाद, अंग्रेज “ सोहरा “ शब्द का उच्चारण “चुरा ( Chura )“ करने लगे, कालांतर में यही चुरा क्षेत्र, चेरापूंजी नाम से जाना जाने लगा. अब मेघालय सरकार द्वारा इस स्थान का नाम बदलकर पुन: “ सोहरा “ कर दिया है. खासी पहाड़ियों पर बसा समाज मातृ मूलक समाज है. यहाँ पिता की संपत्ति पर सबसे छोटी बेटी का अधिकार होता है.
बादल, बरसात और सूर्योदय के लिए प्रसिद्ध इस क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा होने के बावजूद भी यहाँ के लोगो को दिसंबर - जनवरी महीनों में पानी का अभाव झेलना पड़ता है. पानी के लिए कई किमी. दूर जाना पड़ता है. जल संकट के हालात यहाँ तक बद्तर हो जाते हैं स्थानीय नागरिकों को पानी प्राप्त करनेके लिए काफी दूर तक जाना होता है हालत यहाँ तक हो जाते हैं कि एक बाल्टी पानी के एवज़ में 6-7 रुपये तक दाम देने होते हैं.
यहाँ आबादी बढ़ने से वन क्षेत्र घटा है जिससे कृषि पर विपरीत प्रभाव पड़ा है. तेज वर्षा के दिनों में ऊपरी उपजाऊ मृदा बह जाती है. जल संकट का मुख्य कारण, वनों का कटान है जिसके कारण विगत 10 वर्षों में यहाँ वन क्षेत्र 40% कम हुआ है. औद्योगिकीकरण, खनन, आबादी का बढ़ना भी वन क्षेत्र, कृषि क्षेत्र व वातावरण को प्रभावित कर रहा है. मृदा अपरदन के लिए इस क्षेत्र में छोटे-छोटे चेक डैम बनाया जाना व वर्षा के समय पहाड़ों से बह जाने वाले पानी के भण्डारण के लिए उचित जल संचयन व्यवस्था होना बहुत आवश्यक है.
बचपन से सर्वाधिक वर्षा वाले क्षेत्र चेरापूंजी का नाम सुनता और पढता आ रहा हूँ. हमें चेरापूंजी, मेघालय पहुँचना था. मन में उत्साह और कौतुहल था. सुबह सुबह शिलॉंग से चेरापूंजी के लिए रवाना हुए. मार्ग में वर्षा होने लगी तो चेरापूंजी आना सार्थक लगने लगा. वर्षा के कारण मार्ग में एलिफैन्टा केव्स जाने का निर्णय वापसी तक के लिए स्थगित करना पड़ा.
सोहरा एक बड़ा क्षेत्र है मार्ग में एक स्थान पर भुट्टों का आनंद तेते हुए हम उमेस्टिउ व्यू पॉइंट (Umestew View Point) सोहरा, पर, प्रकृति का नज़ारा देखने के लिए रुके,
अभी भी बूंदाबांदी चल रही थी. घाटी से काफी ऊँचाई पर स्थित इस व्यू पॉइंट्स से प्रकति का विस्तृत व सुरम्य दृश्यावलोकन किया जा सकता है. अब हमारा अगला पड़ाव दुनिया में सबसे अधिक वर्षा होने वाले क्षेत्र के रूप में लम्बे समय तक दर्ज रहे गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज, चेरापूंजी, सोहरा था. हालाँकि इस समय विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाले स्थान के रूप में मावसिनराम (Mawsynram), मेघालय, वर्ष में 11,873 मिमी.के कारण जाना जाता है इस स्थान पर स्थानीय उत्पादों के विक्रय हेतु कुछ अस्थाई दुकानें थीं. कुछ आगे पैदल चलकर अब हम एक ऐसे स्थान पर पहुँच कर गर्व महसूस कर रहे थे जहाँ पर एक बोर्ड लगा था और उस पर लिखा था “ SOHRA, The Wettest Place On Earth… Proud to be here “
इस स्थान पर पहुंचकर हमारी ख़ुशी का ठिकाना न था,लेकिन यहाँ लगभग मृदा विहीन पठार और जिरोफिटिक वनस्पति देखकर आश्चर्य हुआ ! क्योंकि मेरे मन-मस्तिष्क में अधिकतम वर्षा वाले क्षेत्र में घने वन और ऊँची-ऊंची हरी भरी घास होने की कल्पना थी. इस कारण यहाँ की भौगोलिक स्थिति और परिस्थितियों को करीब से जानने की जिज्ञासा हुई.
खासी पहाड़ियों, खासी शब्द का अर्थ स्थानीय भाषा में पत्थर (STONE) से है, पर समुद्र तल से 1484 मी. की ऊँचाई पर स्थित और गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जुलाई 1861में 9,300 मिमी. तथा 1 अगस्त 1860 से 31 जुलाई 1861 के बीच 26,461 मिमी. वर्षा के कारण दो रिकॉर्ड दर्ज कराने वाले चेरापूंजी का ऐतिहासिक नाम “सोहरा” है. 1884 में इस कबीलाई क्षेत्र पर अंग्रेजों द्वारा अधिकार के बाद, अंग्रेज “ सोहरा “ शब्द का उच्चारण “चुरा ( Chura )“ करने लगे, कालांतर में यही चुरा क्षेत्र, चेरापूंजी नाम से जाना जाने लगा. अब मेघालय सरकार द्वारा इस स्थान का नाम बदलकर पुन: “ सोहरा “ कर दिया है. खासी पहाड़ियों पर बसा समाज मातृ मूलक समाज है. यहाँ पिता की संपत्ति पर सबसे छोटी बेटी का अधिकार होता है.
बादल, बरसात और सूर्योदय के लिए प्रसिद्ध इस क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा होने के बावजूद भी यहाँ के लोगो को दिसंबर - जनवरी महीनों में पानी का अभाव झेलना पड़ता है. पानी के लिए कई किमी. दूर जाना पड़ता है. जल संकट के हालात यहाँ तक बद्तर हो जाते हैं स्थानीय नागरिकों को पानी प्राप्त करनेके लिए काफी दूर तक जाना होता है हालत यहाँ तक हो जाते हैं कि एक बाल्टी पानी के एवज़ में 6-7 रुपये तक दाम देने होते हैं.
यहाँ आबादी बढ़ने से वन क्षेत्र घटा है जिससे कृषि पर विपरीत प्रभाव पड़ा है. तेज वर्षा के दिनों में ऊपरी उपजाऊ मृदा बह जाती है. जल संकट का मुख्य कारण, वनों का कटान है जिसके कारण विगत 10 वर्षों में यहाँ वन क्षेत्र 40% कम हुआ है. औद्योगिकीकरण, खनन, आबादी का बढ़ना भी वन क्षेत्र, कृषि क्षेत्र व वातावरण को प्रभावित कर रहा है. मृदा अपरदन के लिए इस क्षेत्र में छोटे-छोटे चेक डैम बनाया जाना व वर्षा के समय पहाड़ों से बह जाने वाले पानी के भण्डारण के लिए उचित जल संचयन व्यवस्था होना बहुत आवश्यक है.
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