इतिहास के पन्नों से ..
दिल्ली सल्तनत के दौरान सल्तनत को महफूज़ रखने तथा सरहदों के विस्तार को लेकर तय नीतियों के मद्देनजर सुल्तानों का अपनी रियाया के प्रति मिजाज तय होता था.
इसी क्रम में मोहम्मद बिन तुगलक (1325 ई.-1351 ई.) ने भी दिल्ली में हुकूमत कायम की. वह दिल्ली पर हुकूमत करने वाले सभी सुल्तानों में सर्वाधिक कुशाग्र बुद्धि, धर्म-निरेपक्ष, कला-प्रेमी एवं अनुभवी सेनापति था. वह अरबी भाषा एवं फ़ारसी भाषा का विद्धान तथा खगोल, दर्शन, गणित, चिकित्सा, विज्ञान, तर्कशास्त्र आदि में निपुण था, मोहम्मद बिन तुगलक का हस्तलेख भी बहुत अच्छा था.
सर्वप्रथम मुहम्मद तुग़लक़ ने ही बिना किसी भेदभाव के योग्यता के आधार पर पदों का आवंटन किया. नस्ल और वर्ग-विभेद को समाप्त करके योग्यता के आधार पर अधिकारियों को नियुक्त करने की नीति अपनायी.
कुछ इतिहासकारों के अनुसार दिल्ली निवासी, बादशाह तुगलक को लिखे अपने खतों में उसे गालियों से नवाज़ते थे ! तो झेलो ! तुगलक को सनक उठी ! मय दिल्ली निवासी राजधानी को दिल्ली से देवगिरी बनाने का फरमान जारी कर दिया !! तुगलक किसी पर विश्वास नहीं करता था।
इन सब बातों से इतर तुगलक के व्यक्तित्व में एक अन्य गुण उल्लेखनीय लगा, वो था.... अपनी असफलता या भूल को बिना किसी बादशाही अहम् के सहजता से स्वीकार करना और ईमानदारी से सुधारने का प्रयास करना !!
गलतियां करना बेशक मानवीय स्वभाव है ! लेकिन गलतियों को स्वीकार कर सुधार का प्रयास करना ! व्यक्तिव को निखारता है.
हालांकि मोहम्मद बिन तुगलक को इतिहास में विद्वता के लिए कम और अन्तर्विरोधी सनकी स्वभाव के कारण अधिक जाना जाता है
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