Wednesday 6 July 2016

उत्तराखंड की परम्पराएं ( Tradition Of Uttarakhand )




उत्तराखंड की परम्पराएं ( Tradition Of Uttarakhand )

      शहरों की शादियों में जहाँ एक ओर दूल्हे द्वारा मंहगी से मंहगी सवारी प्रयोग करने का चलन बढ़ रहा है वहीँ उत्तराखंड के ग्राम्य परिवेश में आधुनिकता की दस्तक के बावजूद भी पुरानी शालीन व समृद्ध सांस्कृतिक परम्पराएँ कायम हैं..
     विवाह के शुभ अवसर पर डोला-पालकी परम्परा के अंतर्गत वर (दूल्हा) पीले वस्त्र धारण कर नारायण स्वरूप में पालकी में बैठकर लक्ष्मी (दुल्हन) के द्वार पहुँचते हैं .. दुल्हन डोले में बैठकर ससुराल आती है ..
     पुराने समय में सड़कें बहुत कम थी ! आज की तरह वाहन उपलब्धता भी न थी ! लम्बे दुर्गम मार्गों पर  बाराती पैदल चलते थे अतः डोला - पालकी परंपरा को विवाह के अवसर पर दूल्हे व दुल्हन को विशिष्ट दर्जा दिलाने वाली परंपरा भी कहा जा सकता है ..
      आज अधिकतर क्षेत्रों के सडकों से जुड़ने व वाहन सुलभता के कारण ये परंपरा भी सिमट रही है लेकिन उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी प्रतीक रूप में सही लेकिन डोला-पालकी परम्परा का निर्वहन अवश्य सुनिश्चित किया जाता है।
        सरोळा जी द्वारा..सूखी लकड़ियों की आग में ... भडडू में पकाई गई नौरंगी दाल.... कढाई में पका भात ... और पंगत में बैठकर सहज, स्वाभाविक व स्व अनुशासन में बारात भोज का आनंद ही अलग है।
इन लोक परम्पराओं से बच्चों में बचपन से ही सह अस्तित्व, उचित सामाजिक व्यवहार व स्व अनुशासन आदि मानवीय गुण भी विकसित होते रहते हैं ........... भौतिकवाद की चकाचौंध के बावजूद आज भी समृद्ध व शालीन परम्पराओं को बनाए रखने में ग्राम्य समाज का बहुत बड़ा योगदान है।


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