Wednesday 6 July 2016

जन - जीवन



       यहाँ दिल्ली में जिस सड़क से रोज स्कूल जाता हूँ उस पर कुछ वर्ष पहले सरकार द्वारा दुतरफा यातायात सुचारू आवागमन के उद्देश्य से सड़क को विभाजित करती दीवार पर 3-4 किमी. लम्बी करोड़ों रुपये लागत की आदमकद हैवी आयरन रेलिंग लगायी गई लेकिन एक वर्ष में ही, जिस सड़क पर हर समय गाड़ियां दौड़ती रहती हैं .. आयरन रैलिंग नशेड़ियों व कबाड़ियों के माध्यम से पुन: उन्हीं भट्टियों में गलने के लिए पहुँच गयी जहाँ से ढलकर आई थी !!
       हारकर सरकार ने आयरन रेलिंग की जगह बोगेंवेलिया के झुरमुट लगा कर सड़क को विभाजित रखना उचित समझा !!
       एक दिन केबल चोर बैंक की नेटवर्क केबल को चुरा ले गए .. दिन भर बैंक में काम नहीं हो सका ! फिर पब्लिक का हंगामा !! बैंक कर्मचारी परेशान !!!
       आए दिन दिल्ली में जेबतरासी, गहने झपटमारी और वाहन चोरी होने की खबरें ! आम बात हो गई है।
        उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थिति कुछ भिन्न है ! निर्जन और सुनसान जंगलों के बीच से गुजरती सड़कों पर भी सड़कों के किनारे लगे धातु की मजबूत चादर से बने साइड प्रोटेक्टर्स को ज्यों का त्यों पाता हूँ !! जो किसी कारण क्षति ग्रस्त हो जाते हैं वो भी वैसे ही पड़े रहते हैं !!
       जंगलों के वीरानों में मोबाइल टावर के केबल यूँ ही पड़े रहते हैं !! न उनको कोई क्षति पहुंचाता है न चुराता है !! खुले में सड़कों के किनारे बिजली के खम्भों पर मीटर इतनी ऊँचाई पर लगे हैं की 5-7 साल का खुरापाती बच्चा खड़े-खड़े नुक्सान पहुंचा सकता है. लेकिन सारे मीटर सुरक्षित रहते हैं !!
         उत्तराखंड के पहाड़ी व दूरदराज के क्षेत्रों में जेबतरासी व गहने झपटमारी कतई नहीं, निजी व सार्वजनिक वाहन सुनसान स्थानों पर खड़ा करके बेफिक्र लोग अपने घर चले जाते हैं लेकिन वाहन फिर भी सुरक्षित हैं।
       आर्थिक दृष्टि से समाज की तुलना करता हूँ तो पाता हूँ कि अमीरी, गरीबी, चोर,कबाड़ी, उग्रपंथी और नशेड़ी तो हर जगह है लेकिन इस तरह के ही कुछ अंतर हैं जो उत्तराखंड के समाज को देश के अन्य भागों में भी विश्वसनीयता व सम्मान जनक स्थिति प्रदान करते हैं.
       सुखद प्रतीत होता है कि तेजी से दूषित होते समाज के बावजूद आज भी उत्तराखंड में सार्वजनिक जीवन में नैतिक मानदंड कायम हैं फलस्वरूप व्यक्तिगत संपत्ति के साथ-साथ सार्वजनिक संपत्ति भी सुरक्षित है.
        संभव है कि गैर उत्तराखंडी साथियों को ये सब अतिश्योक्ति पूर्ण लगे लेकिन ... जो साथी उत्तराखंड प्रवास पर गए होंगे उन्होंने ये सब अवश्य अनुभूत किया होगा .


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