Wednesday 24 February 2016

दिल्ली की प्राचीनतम बावड़ी : गंधक की बावड़ी, महरौली गाँव




 दिल्ली की प्राचीनतम बावड़ी 

गंधक की बावड़ी, महरौली गाँव

       उन्नीसवीं सदी से पूर्व बावड़ियां, कुँए और तालाब ही दिल्ली की प्यास बुझाते थे बहुत सुन्दर ढंग से बनायीं गयी इन बावड़ियों पर रौनक बस्ती थी, यदि दिल्ली को बावड़ियों का शहर भी कहा जाय तो अतिशयोक्ति न होगी. ये बावड़ियां केवल जलापूर्ति या गर्मियों में ठंडक ही प्रदान नहीं करती थी बल्कि संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग हुआ करती थी. लेकिन विकास के दौर में अधिकतर बावड़ियां घने कंक्रीट के जंगलों में गुम होकर केवल इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गयी हैं !!
     आज महरौली बस टर्मिनल के नजदीक, महरौली गाँव में तेहरवीं सदी में बनी दिल्ली की सबसे पुरानी और बड़ी बावड़ी की चर्चा की जाय...
     हालाँकि इस बावड़ी में जल स्तर अधिक होने के कारण सुरक्षा कारणों से प्रवेश निषेध है लेकिन मैं किसी तरह अन्दर पहुँच गया. इस धृष्टता हेतु सम्बंधित अधिकारियों से क्षमा चाहूँगा.
     इल्तुतमिश के शासन काल ( 1211-36) में बनी “ गंधक की बावड़ी भूस्तर से नीचे ” पांच सतही (मंजिल) है. अपने नाम को सार्थक करती इस बावड़ी के जल में गंधक की महक आती है. अत: बावड़ी का जल चरम रोगों में लाभदायक है.
      बावड़ी निर्माण के सम्बन्ध में कहा जाता है कि इल्तुतमिश जब सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी साहब से मिलने उनके पास आया तो उसे ख्वाजा साहब को पानी को लेकर होने वाली दिक्कत का पता लगा. इस समस्या के समाधान के लिए इल्तुतमिश ने ख्वाजा क़ुतुब साहब के निवास के पास इस बावड़ी का निर्माण करवाया था.
     निरंतर गिरते भूजल स्तर जल से जूझ रहे क्षेत्र में एक समय इस बावड़ी का जल सूख गया था लेकिन जल विशेषज्ञ विनोद जैन ने कानूनी लडाई लड़कर आसपास के क्षेत्र के लगभग 50 अवैध बोरवेल को सील करवाया. जमीन में सैकड़ों फुट तक गहराई तक जाने वाले बोर वैल करते समय पानी की झिरें कट जाती हैं और इनसे भारी मात्रा में पानी की अनियंत्रित निकासी के कारण आसपास के जलाशय सूख जाते हैं क्योंकि कुएं, बावड़ी और तालाब के भूमिगत स्रोत बहुत अधिक गहराई में नहीं होते हैं. 

         बावड़ियों के जीर्णोद्धार के क्रम में उनमे भरी गाद भी निकाली गयी, परिणाम स्वरुप इस पुरातत्व क्षेत्र में मौजूद गंधक की बावड़ी, का जल स्तर आज प्रथम मंजिल तक दिख रहा है .क्षेत्र के अन्य जलाशयों, राजों की बावड़ी, कुतुब बावड़ी और शम्सी तालाब में भी दशकों बाद पानी का स्तर बढ़ गया है, जिससे पर्यटकों व स्थानीय निवासियों में कौतुहल का माहौल है. भूमिगत जल स्तर बढ़ने के लिए वर्षा जल संचयन तथा अनियंत्रित भूजल निकासी पर रोक लगाने की त्वरित आवश्यकता है जिससे दिल्ली के भूजल स्तर में वृद्धि हो सके फलस्वरूप इन धरोहर बावड़ियों में पुरानी रौनक भी लौट सकेगी.
        भले ही इस बावड़ी का निर्माण सौन्दर्य दिल्ली की कुछ अन्य बावड़ियों जैसा सुन्दर न हो लेकिन सबसे अधिक जल होने के कारण मुझे ये बावड़ी सबसे सुन्दर लगी .. 

                                                   क्योंकि “ जल ही जीवन है “ ..

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