Thursday 28 January 2016

फांसी घर.. पुरानी जेल ..दिल्ली



फांसी घर.. पुरानी जेल .. दिल्ली

              इस शिला पट्ट पर उत्कीर्ण नाम श्रृंखला के हर नाम को पढ़कर बरबस ही होंठों पर, कवि प्रदीप द्वारा रचित व सी. रामचंद्र द्वारा संगीतबद्ध, स्वर कोकिला लता मंगेशकर द्वारा गाए गए अमर गीत की पंक्तियाँ ..
“ ... कोई सिख कोई जाट मराठा,..कोई गुरखा कोई मदरासी,.... सरहद पर मरने वाला..., हर वीर था भारतवासी “ आ जाती हैं .. आप भी तस्वीर में उत्कीर्ण नामावली अवश्य पढियेगा.
          ये अमर स्थल, जाति, धर्म, भाषा व क्षेत्र से ऊपर उठकर एक ही मजहब, देशप्रेम को अपनाकर, देश को आजाद करने में फांसी के फंदे को इस स्थान पर हंसकर चूमने वाले अमर देश भक्तों का स्वातंत्र्य तीर्थ .. “ फाँसीघर “ अर्थात पुरानी जेल.है.
          बहादुर शाह जफ़र मार्ग, दिल्ली स्थित इस ऐतिहासिक स्थल को बाद में मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में तब्दील कर दिया गया. यह स्वातंत्र्य तीर्थ, कॉलेज के विशाल परिसर में अब एक छोटे से पार्क में सिमटकर रह गया हैं .
           अब यहाँ कोई ऐतिहासिक अवशेष नहीं !! वक्त के साथ तत्कालीन व्यवस्था को यहाँ से हटा गया और लगा दिया गया आधुनिक ग्रेनाइट शिला पट्ट !! कारण कुछ भी रहे हों ! कारणों पर बहस नहीं करना चाहूँगा ..
            दिल्लीवासी तो क्या परिसर में रहने वाले अधिकतर बासिंदों को भी इस ऐतिहासिक स्थान के महत्व की जानकारी नहीं है .. साल में एक दिन सरकारी अमला यहाँ आता है .. शहीदों का यशोगान किया जाता है और फिर साल भर चहल पहल भरे परिसर में ये तीर्थ वीरान हो जाता है !!
            ये कटु सत्य कहने में मुझे तनिक भी संकोच नहीं कि हम बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन विभिन्न “ वादों “ की परिधि से बाहर नहीं निकल पाते हैं ..
            व्यक्ति राष्ट् से बढ़कर नहीं हो सकता। राष्ट्र की परिधि में ही व्यक्ति का सम्मान सुनिश्चित होता है। शायद ये शिलापट्ट राष्ट्रधर्म से भटके लोगों को सार्थक दिशा देने में कामयाब हो सके। विभिन्न " वाद " भी राष्ट्र तक ही सीमित हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि अन्तराष्ट्रीय परिदृश्य पर हमारी पहचान केवल और केवल भारतवासी के रूप में ही होती है।


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