Tuesday 8 December 2015

बरनाला के स्तम्भ शिलालेख (तीसरी शताब्दी ई.)




 
 

बरनाला के स्तम्भ शिलालेख (तीसरी शताब्दी ई.)

        पुराने समय में शिक्षा के साधन सीमित और हर किसी की पहुँच में नही थे. ग्रंथों के लेखन हेतु भोजपत्र जैसी सामग्री का प्रयोग किया जाता था. छपाई तकनीक का अभाव व अशिक्षा के कारण ये ग्रन्थ सामान्य नागरिक की पहुँच से बाहर थे. समाज में समृद्ध संस्कार और संस्कृति का पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण होता रहे इस उद्देश्य से शिलापट व शिला स्तम्भ लेखन को प्रश्रय मिला.
       यह प्रयास जन सामान्य हेतु आसानी से सुलभ व स्थायी रूप से जानकारी साधन के रूप में प्रचलित हुआ तस्वीर में शिला स्तंभों में संस्कृत व पाली भाषा में एक स्तूप पर यज्ञ की तारीख संवत 284 (227ईसा सन) अंकित है इसमें सौहत्तर गौत्रीय (यश) राजा के बेटे वर्धन द्वारा किए गए यज्ञ का उल्लेख है .
       दूसरे स्तूप में यज्ञ की तारीख विक्रम संवत 335 (278 ईसा सन) अंकित है जिसमे तीन रातों 5 यज्ञों के दौरान राजा भट्ट द्वारा विष्णु भगवान् की आराधना में 90 गायों मय बछड़ों समेत दान का उल्लेख है .. इन तम्भों को पास के गाँव बरनाला से लाकर याहन आमेर के किले में पर्यटकों की जानकारी हेतु स्थापित किया गया है ..
         यह सभी पुस्तकों में भी वर्णित है लेकिन उसे पढने की रूचि शायद अधिक लोगों में नही !! कारण कुछ भी हो सकते हैं !!
        लेकिन शिलास्ताम्भों में यह उल्लेख आज भी सभी के लिए कौतुहल का विषय है !! और हर पर्यटक को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है ....
        उत्तराखंड में भी अलग-अलग रूप में पुरातन शिलालेखन परिदृश्यत होता है लेकिन भाषा विशेषज्ञों के अभाव, स्थानीय निवासियों व सरकारी तंत्र की उपेक्षा साथ ही, प्रकृति की मार के कारण इस तरह की सांस्कृतिक धरोहरें काल के गर्भ में समाकर लुप्त होती जा रही हैं !! इनके संवर्धन व सरंक्षण हेतु त्वरित उपाय किये जाने की परम आवश्यकता है ..
 
 

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