Sunday 18 October 2015

परमार्थ निकेतन आश्रम, ऋषिकेश



              
              हिमालय की गोद में गंगा के किनारे सन 1942 में संत सुखदेवानंद महाराज जी द्वारा स्थापित व श्रद्धालुओं के निवास हेतु 1000 से अधिक कमरों को स्वयं में समाहित किये हुए, ऋषिकेश का सबसे बड़ा आश्रम," परमार्थ निकेतन आश्रम ", प्रभात की सामूहिक पूजा, योग एवं ध्यान, सत्संग, व्याख्यान, कीर्तन, सूर्यास्त के समय गंगा-आरती आदि से धर्म क्षेत्र में सेवारत है. आश्रम को देखकर मन-मस्तिष्क में अपूर्व शान्ति के साथ-साथ कबीर दास जी का ये दोहा उभर आया ..
स्वारथ सुखा लाकड़ा, छाँह बिहूना सूल |
पीपल परमारथ भजो, सुखसागर को मूल ||
.. संत कबीर
स्वार्थ में आसक्ति तो बिना छाया के सूखी लकड़ी है और सदैव संताप देने वाली है और परमार्थ तो पीपल - वृक्ष के समान छायादार सुख का समुद्र एवं कल्याण की जड़ है, अतः परमार्थ को अपना कर उसी रास्ते पर चलो.
 
 

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