मेरी यात्रा डायरी
Sunday, 10 April 2016
अमूर्त नहीं !
अमूर्त नहीं !
धरती पर उग आये
संवेदनारहित पौधे मूर्त हैं !
महानगरों में
चलते फिरते बुतों ने
फितरत के मुताबिक
अब__
स्टील के दरख्त उगाये हैं !!
... विजय जयाड़ा
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