अशोक स्तम्भ, फिरोजशाह कोटला दुर्ग : दिल्ली
अक्सर जब रिंग रोड़ से गुजरता था तो ये लाट अपनी और ध्यान आकर्षित करती थी, तब मुझे ये दूर से ये चिमनी सी प्रतीत होती थी !! जिज्ञासा हुई !! पहुँच गया ..
पुराने समय में संचार के माध्यमों का अभाव होने के कारण, प्रजा को जानकारी देने के लिए लोहे व पत्थर के ऊँचे स्तम्भों पर राजाज्ञा या किसी विशेष घटना के बारे मे संक्षिप्त वृतांत उत्कीर्ण कर ऐसे स्थान पर स्थापित कर दिया जाता था, जहाँ से आम आदमी आसानी से पढ़ सके।
इतिहासकारों के अनुसार, सम्राट अशोक के दो स्तंभों को फिरोजशाह तुगलक दिल्ली लाया. 13.1 मीटर लम्बा और 27 टन भार वाला यह स्तम्भ पोलिश किये हुए बलुआ पत्थर का है लेकिन देखने में धातु सी चमक लिए हुए है जो तीन शताब्दी ईसा पूर्व का है और यह फिरोजशाह द्वारा टोपरा(अम्बाला) से उठवाकर दिल्ली लाया गया है और फिरोजशाह कोटला दुर्ग में वर्तमान स्थान पर जामी मस्जिद के समीप स्थापित किया गया. जिस पुराने ढाँचे पर ये स्तम्भ स्थापित है अब वह जीर्ण हो चुका है।
दूसरे स्तंभ को मेरठ के पास से लाकर कुश्क ए शिकार पर स्थापित किया गया।
इस पर सम्राट अशोक की राजाज्ञाएं, पाली, प्राकृत और ब्राही लिपि में सात अभिलेख उत्कीर्ण है। इस पर चौहान शासक बीसलदेव, भद्रमित्र और इब्राहीम लोदी के भी अभिलेख उत्कीर्ण हैं।
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