Thursday, 21 April 2016

चरैवेती चरैवेती !!



चरैवेती चरैवेती !!


            ऋषिकेश-चंबा मार्ग पर मैदानी भागों से उत्तरकाशी से भी आगे ठन्डे स्थानों की तरफ अपने माता-पिता के साथ ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए बढ़ती इन बच्चियों से रूबरू हुआ. रात के अंधेरों में परिवार और मवेशियों के साथ अपने नन्हे-नन्हे क़दमों से कई किमी. की कठिन चुनौतीपूर्ण दूरी को मजबूत इरादों के साथ तय करती इन बच्चियों के पिता ने प्रारंभिक हिचकिचाहट के बाद मेरे मंतब्य को भांपते हुए, अंतत: इन बच्चियों, शाजमा और रेशमा, को मेरे साथ तस्वीर क्लिक करने की अनुमति दे ही दी.
         पूरी रात गंतव्य की ओर चलते हुए जहाँ कहीं भी इन घुमन्तू लोगों को सुबह के दीदार होते हैं वहीँ पानी के श्रोत के आसपास ये लोग अपने लिए भोजन व मवेशियों के लिए चारे की व्यवस्था के लिए व कुछ समय आराम करने हेतु वहीँ डेरा डाल देते हैं.गर्मी की आहट इन घुमंतू गुर्जर लोगों को पहाड़ी ठन्डे भागों की ओर, और सर्दी की इनके द्वार पर दस्तक, इन्हें मय पशुधन मैदानी भागों की ओर बढ़ने को मजबूर कर देती है !!
         पारंपरिक पाठशाला तो शायद इनके लिए स्वप्न सदृश ही है !! प्रकृति की गोद ही इन बच्चियों की वास्तविक व व्यावहारिक पाठशाला है ! और वही कर्मभूमि भी है. प्रकृति ही इन बच्चियों को कठिन परिस्थितियों में धैर्य पूर्वक सामंजस्य बना कर जीना सिखाती है, आत्मविश्वास उत्पन्न करती है.
        चरैवेती चरैवेती ... शायद यही जीवन मंत्र इन घुमंतुओं ने व्यावहारिक रूप में आत्मसात कर लिया है ..नहीं थकना .. नहीं रुकना .. सतत चलना सदा चलना ..
   प्रवास पर ये भी हैं ! और मैं भी !! लेकिन दोनों के प्रवास की प्रकृति में काफी भिन्नता है !!


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