Thursday 15 September 2016

सूत्रधार ....






सूत्रधार ....
               मकड़जाल की तरह गुंथी तंग गलियों में जहाँ घरों को शायद ही सूर्य की सीधी किरणें स्पर्श कर पाती हों ! ... चींटियों की तरह एक के पीछे एक चलते या यूँ कह लीजिए, रेंगते रिक्शे, दुपहिया वाहनों व चलते- फिरते लोगों की भीड़ से बचते-बचाते.. हवेलियों, कटरों, कूचों, छत्तों की बसागत वाली पुरानी दिल्ली (चांदनी चौक) में लक्षित स्थान तक पहुँच पाना, इलाके से अनभिज्ञ व्यक्ति के लिए अगर असंभव नहीं ! तो आसान भी नहीं है !!
              एकाधिक अवसरों पर व्यक्तिगत अनुभव हुआ कि इतिहास में स्थान जिस नाम से विख्यात होता है, वह स्थान या स्मारक, स्थानीय निवासियों में किसी दूसरे ही स्थानीय नाम से प्रचलित होता है !! इस स्थिति में सम्बंधित क्षेत्र में पहुँचने पर भी इच्छित जगह न मिल पाने के कारण मन में हताशा और निराशा घर करने लगती है. इस कारण थक हारकर बैरंग ही लौट चलने का जी करने लगता है.
            अक्सर महसूस किया है कि हताशा की इस स्थिति में यदि सब्र, नम्रता व व्यवहार कुशलता को माध्यम बनाया जाए तो अंत में कोई न कोई स्थानीय उम्र दराज निवासी आपको मंजिल तक पहुंचाने में मददगार साबित हो सकता है. इस प्रकार लक्षित स्थान मिलने पर जो खुशी मिलती है उसको शब्दों में बयाँ करना कठिन है। बस यूँ मान लीजिए ऐसा अनुभव होता है कि मानों संजीवनी बूटी मिल गई !
            भुलक्कड़ प्रवृत्ति का होने के कारण मुझे अक्सर इस तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है !चांदनी चौक क्षेत्र में इस बार स्थानीय निवासी श्री प्रवीण कुमार जी, स्थानीय अबूझ जानकारियों के सूत्रधार बने.. धन्यवाद श्री प्रवीण कुमार जी ..



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