“ रानी का तालाब “, नरेन्द्र नगर, टिहरी गढ़वाल .. भाग -2
साथियों, ऋषिकेश से चंबा मार्ग पर 10 किमी. दूर, प्लास्डा क्षेत्र व पॉलीटेक्निक परिसर के पीछे जंगल में काफी खोजने के बाद एक वृक्ष रहित ऊंची बरसाती घास वाला समतल भूखंड दिखा, मन में विचार आया कि शायद कभी यही तालाब रहा होगा जो कि समय के साथ मिटटी और पत्तियों से भर गया होगा !! लेकिन तभी सोचा कहीं तो तालाब की किनारों के अवशेष दिखने चाहिए ! पूरे भूखंड को खोजी नजरों से देखा लेकिन कहीं तालाब के किनारों के अवशेष न मिले !!
तभी मेरे साथी धर्म सिंह, जो की खोजने के क्रम में मुझसे कुछ दूर चला गया था, ने आवाज दी, “ मामा जी ! मुझे नीचे कुछ बजरी सी दिख रही है “ ये सोचकर कि तालाब तो अब मिलेगा नहीं !! चलो उधर से ही घर को चल देंगे, मैं कौतुहल में उस तरफ बढ़ा. वह बदहाल हालत में 10-12 फुट चौड़ी सीमेंट की सड़क थी. हम उस पर 100 मी. ही चले होंगे कि तालाब पर पहुंचकर सड़क समाप्त हो गयी. अब हम अनजाने में ही लक्ष्य “ रानी का तालाब “ तक पहुँच चुके थे.
हमारे सामने चारों तरफ साल, कुसुम, हल्दू, खैर आदि वृक्षों व कुछ ऊँची पहाड़ियों से सुरक्षित, गहराई में, सुर्खी (चूना+पत्थर मिश्रण) से पटा, करीब 500 वर्ग मी. क्षेत्रफल व वर्तमान में 8 फीट गहरा, “रानी का तालाब“ था, मूल रूप में इसकी गहराई 12-15 फीट थी.
महाराजा नरेन्द्र शाह के काल (1913-1946) में यहाँ रानी नौका विहार के लिए आती थी. उस समय तालाब में बड़ी-बड़ी मछलियाँ भी हुआ करती थी. काफी खोजने के बाद भी तालाब से जल निकासी व्यवस्था नहीं मिल सकी! लगता है तालाब का फर्श कच्चा रहा होगा, और जल के स्थायी संचयन के कारण ही मत्स्य पालन संभव हो पाता होगा. खैर ! इस सम्बन्ध में मानसिक द्वन्द बना रहा !! पहाड़ियों से नीचे की तरफ बहने वाले जल को संकरी नहर के द्वारा तालाब में लाया गया है. नहर से तालाब में जल गिरने का मुहाना, दीवारों के सहारे तालाब के जल स्तर से लगभग 30 फीट ऊपर है. ज्ञात हुआ कि पहले मिला समतल भूखंड, सामरिक दृष्टि से सैनिकों की छावनी के रूप में प्रयोग किया जाता था .
दरअसल महाराजा, प्लास्डा क्षेत्र को बागवानों के रूप में विकसित करना चाहते थे.. आज भी उस समय लगाये गए आम के बड़े-बड़े वृक्ष हैं. जिस नहर का निर्माण किया गया था ..सड़क निर्माण के कारण अब दिखाई नहीं देती. नहर निर्माण के समय, ऋषिकेश, तपोवन ग्राम वासियों द्वारा नहर के जल से अपने उन्नत बासमती के खेतों के कटाव के भय से नहर निर्माण का विरोध किया गया था,
1949 में टिहरी रियासत का भारतीय संघ में विलय के बाद, महाराजा के प्लास्डा क्षेत्र को बागवानों के रूप में विकसित करने का सपना अधूरा रह गया ..
साथियों, राज परिवार के आकर्षण और प्रजा के कौतुहल का केंद्र रहा ये रमणीक स्थल, आज जलरहित है और जंगली घास व कंटीली झाड़ियों से पटा बदहाल अवस्था में अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है ! .
जिस सीमेंट के जर्जर मार्ग से हम तालाब तक पहुंचे थे वो राजशाही काल का नहीं लगता.. वर्तमान स्थिति देख कर लगता है कि पर्यटन विकास के लिए इस तालाब को चिह्नित किया गया होगा .. और कार्य प्रारंभ करने के बाद योजना अधूरी छोड़ दी गयी !
बहुत ही सुरम्य भौगौलिक स्थिति में होने के कारण उत्तराखंड सरकार को तालाब को स्मारक के रूप में संरक्षित रखने के साथ-साथ बागवानी क्षेत्र व पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करना चाहिए, इससे क्षेत्र में स्थानीय रोजगार भी उपलब्ध हो सकेगा .. 04.07.15
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