Saturday, 11 July 2015

तलाश

तलाश

इंसान मंगल तल पर
जिंदगी तलाशता है !
मगर धरती के तल पर

इंसानियत खोजता हूँ__
भटकता हूँ तलाश में
हर खंडहर से पूछता हूँ
दरिया और तटों से
वो तहजीब पूछता हूँ__
बदली नहीं ये धरती
न आसमां ही बदला !
बदल गया क्यों इंसान !
वजह तलाशता हूँ__
गुजरता हूँ उधर से
जिधर से कभी चला था
गुम गया बहुत पहले
वो सामान खोजता हूँ__
तलाश न जाने कब तक
ठौर है न ठिकाना !
किनारों की तलाश में अक्सर
         उतराता और डूबता हूँ____

.. विजय जयाड़ा 05.0715

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