इतिहास के झरोखे से दिल्ली : दिल्ली का ऐतिहासिक जायका ;
"जलेबी वाला", चांदनी चौक.
साथियों, वर्तमान में दिल्ली का काफी विस्तार हो चुका है लेकिन आज भी पुराने लोग, चांदनी चौक को ही दिल्ली संबोधित करते हैं मुग़ल काल में आज का चांदनी चौक क्षेत्र ही शाहजहानाबाद के रूप में दिल्ली कहलाता था. एक बार यहाँ मलेरिया का प्रकोप, महामारी की तरह फैला तो देशी हकीम और वेदों ने आम लोगों को मलेरिया से बचने के लिए भोजन में तीखे स्वाद वाले मसालों का प्रयोग करने की सलाह दी .. सोचता हूँ तब से ही चांदनी चौक में तीखे स्वाद वाले लज्जतदार पकवानों का दौर और मसालों का कारोबार भी परवान चढ़ा होगा !!"जलेबी वाला", चांदनी चौक.
अब विषय पर चर्चा हो जाय ! हालाँकि दिल्ली के आधुनिक स्वरुप में खाने-पीने के क्षेत्र में कई नयी दुकानें अपना स्थान बना चुकी हैं लेकिन यदि इतिहास की चाशनी में भीगी, गैस की तेज धु–धु करती लौ से हटकर कोयले की नर्म आग में स्वपालित भैंसों के देशी घी से निर्मित स्वादिष्ट जलेबियों का आनंद लेना है तो शीशगंज गुरुद्वारा के पास, दरीबा (आभूषण बाजार) के नुक्कड़ की दुकान “ जलेबी वाला “ पर स्वादिष्ट समोसे व नर्म जलेबियों का स्वाद लेना न बिसर जाइएगा..
एक सौ दस साल से आम लोगों के साथ-साथ लगभग सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों तथा भारत और पकिस्तान के क्रिकेट खिलाडियों व राजकपूर के अलावा कई फ़िल्मी सितारे, इस दुकान की स्वादिष्ट नर्म जलेबियों के स्वाद का आनंद उठा चुके हैं. दुकान की जलेबियों के पुराने शौक़ीन बताते हैं कि जो लाजवाब स्वाद पहले था ..आज भी वही है ..
1905 में श्री नेमी चंद जैन ने जब यहाँ पर दूकान चलाना शुरू किया तो कई तरह के खान-पान बनाकर स्वयं को आजमाया लेकिन अंत में समोसे और जलेबी तक ही स्वयं को सीमित कर दिया. आज भी यहाँ पर समोसों का स्वाद लिया जा सकता है। जलेबी बनाने का ख़ास नुस्खा केवल परिवार के सदस्यों तक ही सीमित है. जलेबियों के लिए सामान्य शक्कर की जगह देशी खांड का इस्तेमाल किया जाता है. एक फिरनी (125 ग्राम) का दाम 50 रुपये अर्थात 400 रुपये किलो के भाव बेचने वाले “जलेबी वाला”, कई यूरोपीय देशों में भी अपनी नर्म जलेबियों के स्वादिष्ट स्वाद से वहां के बासिंदों की जुबान पर अपना स्थान बना चुका है ..9.06.15
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