खंडहर और मीनार
खंडहर और_
मीनारों की शक्लों में,
बयां तारीख करती है,
ना बादशाह ही सलामत
ना तख़्त-ओ-ताज ही बाकी,
इंसानियत से ज्यादा__
गुमाँ था__
दौलत और तलवारों पर,
छूट गई दुनिया..
हुए वो भी यहाँ मिटटी,
रह गए केवल__
गढ़े किस्से__कुछ खंडहर,
लटकती मीनार__ही बाकी !!
.. विजय जयाड़ा
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