2000 साल पुरानी सभ्यता व संस्कृति से पोषित करता
एक लुप्त महानगर : वीरभद्र क्षेत्र , ऋषिकेश
ऋषिकेश और आस-पास का क्षेत्र केवल धार्मिक महत्व को ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व को भी समेटे हुए है. ऋषिकेश में सीमा डेंटल कॉलेज के पास से बायीं तरफ मुड़कर लगभग तीन किमी. चलकर, रम्भा नदी के किनारे, लगभग 2000 सालों का इतिहास समेटे, इस उत्खनन स्थल, आम बाग़, वीरभद्र तक पहुंचा जा सकता है. मूल रूप से नागा सम्प्रदाय के निरंजनी अखाड़े की इस भूमि में खेती करने की प्रक्रिया के दौरान स्थल का पता लगा. इस के बाद पुरातत्वविद श्री. एन. सी. घोष की देख रेख में इस स्थल की 1973 से 1975 तक पुरातात्विक खुदाई की गयी थी.
आठवीं सदी तक यहाँ महानगर हुआ करता था. कालांतर में अज्ञात कारणों से इस क्षेत्र की सभ्यता व संस्कृति लुप्त हो गयी !! खेतों में प्राचीन अवशेष व छोटे-छोटे मंदिर इस स्थान पर मिलते थे लेकिन कुछ दशक पूर्व इस क्षेत्र में आश्रम निर्माण व टिहरी विस्थापितों के पुनर्वास की प्रक्रिया के दौरान इनका सही रूप में संरक्षण नही हुआ !! कितनी ही दुलर्भ पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं नष्ट हो गयी !! केवल ये छोटा सा हिस्सा ही पुरातत्व विभाग ने संरक्षित किया है.
गुप्त काल में यह उत्खनित स्थान प्रसिद्ध शैव तीर्थ था. चीनी यात्री हृवेनसांग की यात्रा के दौरान भी यहाँ मंदिर और बौद्ध मठ थे. इस उत्खनन स्थल के ठीक सामने प्रसिद्ध वीरभद्र मंदिर है जिसे दक्ष प्रजापति के यज्ञ स्थल कनखल से जोड़ा जाता है. इस दृष्टि से ये क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है.
इस उत्खनन स्थल से आठवीं सदी से तीसरी सदी की प्राचीन मुद्राएँ,मिटटी के बर्तन, मूर्तियाँ व अन्य अवशेष प्राप्त हुए हैं. जिन्हें पुरातत्व विभाग द्वारा देहरादून में संगृहीत किया गया है. पहली सदी से तीसरी सदी के दौरान, दीवारों में प्रयुक्त कच्ची ईंट, चौथी से पांचवीं सदी में पक्की ईंटों से निर्मित फर्श तथा शैव मंदिर, सातवीं व आठवीं सदी के पक्की ईंटों से निर्मित कुछ आवासीय संरचनाएं इस उत्खनित स्थल से प्राप्त हुई हैं. दो शिवलिंग आज भी यहाँ मौजूद हैं.
कहा तो ये भी जाता है कि तैमूरलंग के आक्रमण के समय यहाँ विध्वंस किया गया लेकिन इसके ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं..
आलेख दीर्घ होता जा रहा है लेकिन इतना अवश्य कहना चाहूँगा कि जिस क्षेत्र की पूरी सभ्यता व संस्कृति लुप्त हो गयी, उस क्षेत्र का अन्य ऐतिहासिक स्थलों की तरह सूक्ष्मता से उत्खनन व विश्लेषण कर के यह पता अवश्य लगाया जाना चाहिए कि आखिर अचानक ही एक समृद्ध सभ्यता व संस्कृति लुप्त क्यों और कैसे हो गयी !!
वर्तमान स्थिति को देखकर बहुत दुःख हुआ 2000 साल का इतिहास समेटे यह उत्खनन स्थल खुले आकाश के नीचे आज भी प्रकृति के थपेड़े सह रहा है. समीप ही वीरभद्र मंदिर दर्शन हेतु असंख्य श्रद्धालु पहुँचते हैं !! लेकिन स्थानीय निवासियों को भी इस उत्खनन स्थल के महत्व का ज्ञान नहीं !! न इस स्थल को देखने के लिए कोई उत्सुक पर्यटक यहाँ दिखा !!
पहले उत्खनन को सुरक्षित रखने के लिए टिन शेड था लेकिन प्रकृति की मार से शेड गिर गया जिसे चार साल से अब तक पुनर्स्थापित नहीं किया जा सका है !! दिल्ली में देखता हूँ सरकारी शौचालयों व सडकों के किनारे पर कीमती ग्रेनाइट पत्थर के इस्तेमाल पर भरपूर धन व्यय किया जा रहा है !! लेकिन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल उपेक्षा के शिकार हैं ..
ऐतिहासिक धरोहरो की उपेक्षा एक अतुलनीय हानि है। इन अमूल्य प्राचीन सभ्यताओं की वास्तुकला के नमूने व संस्कृति को दर्शाने वाले ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है.
.... 29.07.15