Monday, 29 August 2016

कुतुब मीनार दिल्ली .. ( KUTUB MINAR, DELHI)



          मेरे छुटकु कैमरे की नजर से  ... पत्थर और गारे से निर्मित, विश्व की सबसे ऊंची (72.5 मी.) मीनार, विश्व धरोहर कुतुब मीनार ( KUTUB MINAR)
          1963 में देवानन्द साहब ने इस मीनार में अपनी फिल्म " तेरे घर के सामने " के गीत .... दिल का भंवरा करे पुकार .. की शूटिंग करना तय किया था लेकिन उस समय के बड़े साइज के कैमरे मीनार में व्यवस्थित न हो सके ! फलस्वरूप देवानन्द साहब को कुतुब मीनार के मॅाडल में गाने का फिल्मांकन करके ही संतोष करना पड़ा।
          1981 में मीनार के अन्दर अचानक लाइट चली जाने से मीनार की 379 सीढ़ियों में मची भगदड़ से कई स्कूली छात्रों की मृत्यु के बाद आम जनता के लिए कुतुब मीनार के अन्दर प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया।
           कुतुब मीनार के साथ, अलाई दरवाजा और इमाम ज़ामीन का मकबरा है।




Sunday, 21 August 2016

अंधे के हाथ बटेर !!



अंधे के हाथ बटेर !!

         विकास नगर, देहरादून  से कुछ दूरी पर लेकिन बैराठ खाई से पहले चालक ने भोजन के लिए जीप रोकी. इस छोटे से स्थान पर कुछ दुकानें थी. मैंने हल्का नाश्ता किया और कुछ तस्वीरें लेने लगा. अचानक उमड़ते-घुमड़ते बादलों का दृश्य मनोरम लगा लेकिन चश्मा जीप में ही छूट गया था और मेरे छुटकू कैमरे का ज़ूम भी ख़राब हो गया था.! इस कारण दृश्य कैमरे के स्क्रीन पर स्पष्ट नहीं दिख पा रहा था ! अंदाज से ही क्लिक कर लिया !! . इस तरह लग गया “ अंधे के हाथ बटेर !! “

Saturday, 20 August 2016

विकास नगर, देहरादून ( Vikas Nagar, Dehradun )



चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला
     तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला ....

Friday, 19 August 2016

जंगलात चौकी, चकराता, देहरादून .. Forest Post, Chakrata, Dehradun




जंगलात चौकी, चकराता, देहरादून .. Forest Post, Chakrata, Dehradun

         "पहाड़ : संस्कृति, साहित्य और लोग" पर केन्द्रित, "पलायन एक चिंतन' दल द्वारा दिनांक 14 व 15 अगस्त 2016, दूरस्थ व दुर्गम क्षेत्र, ग्राम-कनासर, चकराता, जौनसार-बावर में आयोजित विचार गोष्ठी में विद्वानों के सानिध्य में विचार मंथन का सौभाग्य प्राप्त हुआ.कनासर की तरफ बढ़ते हुए देहरादून से         लगभग 96 किमी. दूर दुर्गम मगर प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर स्थान, “ जंगलात चुंगी, “ पर रुके. ये स्थान किसी समय जौनसार की प्रसिद्ध आलू मंडी हुआ करती थी. यतायात व साधन सुविधा बढ़ने से स्थानीय निवासी अब स्वयं मनचाही जगह अपना आलू विक्रय करने लगे हैं. आज भी तत्कालीन आलू थोक व्यापारी अरुण कुमार जैन, सुधीर कुमार जैन, महावीर प्रसाद व टेकचंद के ताला बंद गोदाम, एक समय इस स्थान पर ढुलान-लदान और मोल-भाव में व्यस्त लोगों की चहल-पहल से गुलज़ार, बाज़ार की कहानी बयाँ करते हैं. आज ये स्थान सुनसान सा महसूस होता है.
          बारिश के साथ ठण्ड भी थी अत: यहीं बैठकर, मेरे सबसे दायें “ पलायन एक चिंतन “ दल के पुरोधा श्री रतन सिंह असवाल जी, साहित्यिक चिन्तक श्री जागेश्वर जोशी जी व मेरे बाएं गोष्ठी की गतिविधियों को करीब से सदा के लिए अपने कैमरे के माध्यम से दक्षता से सहेजने का दायित्व सँभालने की जिम्मेदारी लिए ऊर्जावान कार्यकर्ता श्री विनय जी के साथ कुछ देर रूककर चाय का आनंद लिया।


यादगार लम्हे ... Memorable Movements with Uttarakhand Gaurav Sh Narendra Singh Negi




यादगार लम्हे ...  Memorable Movements with Uttarakhand Gaurav Sh Narendra Singh Negi 

     राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिलब्ध, सरल व्यक्तित्व के धनी, गढ़रत्न, आदरणीय श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी, अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से उत्तराखंड की पहचान हैं। आपके सुर - संगीत के माधुर्य में उत्तराखंड का इतिहास व संस्कृति जीवन्त रमती है ! प्रवाहमयी होती है !!
      " प्लायन एक चिंतन " दल द्वारा सुदूर, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर, सघन देवदार वन के मध्य, जौनसार-बावर, जनजातीय क्षेत्र, ग्राम-कनासर में, " साहित्य - संस्कृति और लोग " पर केंद्रित विचार गोष्ठी में आपके सानिध्य सुख का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
      ये यादगार तस्वीर सेलेब्रिटी के साथ मात्र साझा तस्वीर सुख ही नहीं ! बल्कि सोचता हूँ ऐसी विभूतियों के ओज क्षेत्र में रहना भी अप्रत्यक्ष रूप में बहुत कुछ दे जाता है।


ग्राम-लोहारी ( Lohari ), लोखंड (Lokhand) , चकराता , देहरादून






ग्राम-लोहारी ( Lohari ),लोखंड (Lokhand), चकराता , देहरादून 

            उत्तराखंड में प्राकृतिक सुन्दरता सर्वत्र बिखरी पड़ी है। इन खूबसूरत स्थानों से अनभिज्ञ होने के कारण पर्यटक अंग्रेजों के समय से लोकप्रिय कुछ चुनिन्दा स्थानों का ही रुख करते हैं ! उत्तराखंड के विभिन्न खूबसूरत स्थानों को पर्यटन मानचित्र पर उचित स्थान दिलाने व पर्यटकों के मध्य लोकप्रिय करने हेतु पर्यटन विभाग द्वारा उचित प्रयास किया जाना आवश्यक है। इस प्रकार स्थानीय रोजगार को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ राज्य के पर्यटन राजस्व में भी बढ़ोतरी हो सकती है।
          जूम विकल्प खराब हो जाने के बाद भी मेरे छुटकु कैमरे की नज़र में चकराता से लगभग 15 किमी. की दूरी पर स्थित, जौनसार-बावर क्षेत्र में हिमालय की मनोरम पहाड़ियों की गोद में आबाद काष्ठ निर्मित घरों के एक खूबसूरत, ग्राम-लोहारी का विहंगम नजारा ... संघनित वाष्प से निर्मित, तेजी से ऊपर उठते बादलों के कारण ये नजारा और भी दिलकश हो जाता।



Thursday, 18 August 2016

सर... चकराता !! ....चकराता, देहरादून, उत्तराखंड ( Chakrata, Dehradun, Uttarakhand )




सर... चकराता !!... चकराता, देहरादून, उत्तराखंड 

      स्थानीय बस सेवा द्वारा देहरादून से विकासनगर और फिर विकासनगर से जीप द्वारा बादलों के फाहों में लिपटे, अपेक्षाकृत छोटे व खूबसूरत शहर, चकराता, पहुंचा. जीप की सभी सवारियां उतरकर चालक को किराया देने लगी तो मैंने भी किराया राशि चालक की तरफ बढ़ाई लेकिन चालक नहीं ली और कहा " आप इस क्षेत्र में नए हैं, पहले आपको कनासर जाने वाली किसी उचित गाड़ी में बिठा लूँ फिर आपसे किराया ले लूँगा " इस तरह सरल व सहज आत्मीय व्यवहार से स्थानीय चालक ने मेरा दिल जीत लिया. चकराता में, 27 किमी. दूर कनासर पहुँचने के लिए वाहन की प्रतीक्षा करने के साथ-साथ आदतन छायांकन और स्थानीय जानकारियाँ भी जुटाने लगा.
      समुद्र तल से लगभग 7000 फीट ऊँचाई पर स्थित इस खूबसूरत स्थान के नामकरण के सम्बन्ध में एक रोचक वाकया प्रचलित है। कहा जाता है कि गर्मी से तंग आकर ब्रिटिश सेना के कर्नल ह्यूम जब देहरादून से लगभग 95 किमी. की दूरी पर शहर की भीड़-भाड़ से दूर, मनोरम पहाडियों और घने जंगलों से घिरे, इस अल्प ज्ञात स्थान पर पहुंचे तो जिज्ञासावश उन्होंने पेड़ की छाँव में बैठे अस्वस्थ स्थानीय निवासी से इस स्थान का नाम पूछा. स्थानीय निवासी अंग्रेज की बात ठीक से न समझ सका ! उसने सोचा ! शायद अंग्रेज उसका हाल पूछ रहा है तो उसने अंग्रेज से उसके ही लहजे में उत्तर दिया, “ सर .. चकराता “
      कर्नल ह्यूम को यह प्रदूषण मुक्त स्थान इतना पसंद आया कि वे यहीं के होकर रह गए और उन्होंने इस स्थान को ..” चकराता “ नाम दे दिया. इसके बाद ब्रिटिश आर्मी द्वारा इस स्थान का उपयोग समर आर्मी बेस के रूप में किया जाने लगा.
      हालांकि प्राकृतिक सुन्दरता से परिपूर्ण चकराता, सैन्य छावनी क्षेत्र होने के कारण पर्यटन मानचित्र पर उचित स्थान नहीं बना पाया है लेकिन ऊंचे-ऊंचे सघन शंकुवाकार देवदार वृक्षों की पहाड़ियों से घिरा ये क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य में किसी भी स्तर पर मसूरी से कम नहीं है.
      यहाँ साहसिक पर्यटन के शौक़ीन सैलानियों के लिए स्थानीय निवासियों द्वारा आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध हैं. एशिया का सबसे लम्बा और गोलाई वाला देवदार वृक्ष भी इसी क्षेत्र में है. सर्दियों में बर्फ़बारी से सफ़ेद चादर में लिपट जाने के बाद इस क्षेत्र का सौन्दर्य देखते ही बनता है.
      शांति प्रिय पर्यटकों में लोकप्रिय, चकराता से 5 किमी. दूर 50 मी. ऊंचा झरना, टाइगर फॉल है. प्रकृति को करीब से देखने ले लिए 26 किमी. की दूरी पर स्थित, “ कनासर ‘ की शांति भी बहुत कुछ बयां करती है. चकराता से महाभारत काल से जुड़े लाखमंडल, मोईगड झरना, रामताल गार्डन, बुधेर गुफा और 16 किमी. दूर समुद्र तल से 9500 फीट की ऊँचाई पर स्थित ‘ देववन ' से हिमालय की विशाल पर्वत श्रंखलाओं को निहारने का आनंद लिया जा सकता है
      चकराता पहुँचते हुए महाभारत व मौर्य काल से जुड़े कालसी में सम्राट अशोक के शिलालेख व पुरावशेषों का अवलोकन भी किया जा सकता है
      चकराता प्रवास के लिए मार्च से जून और अक्टूबर से दिसम्बर उपयुक्त समय है। जून के अंत और सितम्बर के मध्य में यहाँ वर्षा होती है। अधिक ऊँचाई पर होने से यहाँ पर बर्फ़बारी के कारण सर्दियों में काफ़ी ठण्डी होती है। वन विभाग की साइट द्वारा गेस्ट हाउस बुक किया जा सकता है ठहरने के होटल कम होने के कारण यहाँ यहाँ रहने पर अधिक व्यय संभव है यदि आप एक दो लोग हैं तो स्थानीय निवासी आपको घरों पर कम दाम पर आवासीय सुविधा उपलब्ध करवा सकते हैं.
      कुछ देर रुकने पर " पलायन एक चिंतन " दल के अन्य सदस्य भी अपने-अपने निजी वाहनों से चकराता पहुँच गए.. दल के संयोजक श्री रतन सिंह असवाल जी ने मुझे देख लिया. मेरी वाहन व्यवस्था हो चुकी थी अतः जीप चालक ने मुझसे किराया ले लिया. ठण्ड का आभास हो रहा था ! असवाल जी, श्री जागेश्वर जोशी जी व श्री विनय जी के साथ चाय पीकर हम एक ही गाड़ी से अपने अंतिम पड़ाव, कनासर, की ओर चल दिए।


Wednesday, 17 August 2016

घंटा घर, देहरादून . ( Clock Tower of Dehradun ).उत्तराखंड



घंटा घर, देहरादून .. ( Clock Tower of Dehradun )

उन्होंने चौराहों पर
समय को खड़ा किया
हमने चौराहों पर
बुत बना दिए,
बुत से हुई हमें
मुहब्बत इस कदर !
उनको भी फिरकों में
बांटने के मंसूबे बना दिए !!
.. विजय जयाड़ा 

              स्वतंत्रता से पूर्व निर्मित, देहरादून  के  राजपुर रोड स्थित, घंटाघर से शायद अधिकतर लोग वाकिफ होंगे. निर्माण की दृष्टि से यह पूरे एशिया में अलग ही प्रकार का निर्माण है षष्ठ फलकीय यह आकृति देहरादून की सुंदरता का मुख्य बिंदु है साथ ही किसी भी पते-ठिकाने की जानकारी हेतु इसे केन्द्र माना जाता है. 
   पहले इस घंटाघर के माध्यम से बहुत दूर से ही समय देख लिया जाता था और इसकी घंटियों की आवाज़ बहुत दूर तक सुनाई पड़ती थी लेकिन शायद बदलते परिवेश में इसका महत्व समय पता करने की दृष्टि से कम होता चला गया. तभी तो कुछ सालों से इसकी सुइयों की गति ठहर गयी है और सन्नाटे को चीरती ,घंटियों की आवाज़ सुनने को कान तरस गए है.
  

Thursday, 4 August 2016

आस्था, श्रद्धा व विश्वास के प्रतीक : श्री कंडार देवता मंदिर ( Kandar Devta Temple ), कलेक्ट्रेट, उत्तरकाशी ( Uttarkashi ),उत्तराखंड




आस्था, श्रद्धा व विश्वास के प्रतीक : श्री कंडार देवता मंदिर ( Kandar Devta Temple ), कलेक्ट्रेट, उत्तरकाशी ( Uttarkashi ),उत्तराखंड 

          1985 से 92 तक उत्तरकाशी में निवास किया उसके बाद कई बार उत्तरकाशी जाना हुआ लेकिन कलक्ट्रेट उत्तरकाशी के मुख्य द्वार पर स्थापित श्री कंडार देवता मंदिर के पास से कई बार गुजरने के बावजूद भी दर्शन का सौभाग्य न मिल सका ! लेकिन अबकी बार शायद श्री कंडार देवता को मंजूर था. दो बजे उत्तरकाशी पहुंचे तो भूख लगने लगी . सोचा !! भोजन से पूर्व, श्री कंडार देवता  के दर्शन कर लिए जाएँ ! मंदिर के पास ही भंडारी होटल में बैग रखा और मंदिर में पहुँच गए.
        श्री कंडार देवता से जुडी कथा के अनुसार राजशाही के समय यही कलक्ट्रेट के पास खेत पर हल लगाते हुए एक किसान को अष्टधातु से बनी अद्भुत प्रतिमा प्राप्त हुई. राज्य की संपत्ति मानकर किसान ने प्रतिमा को राजा को सौंप दिया तत्पश्चात राजा ने इस प्रतिमा को अपने देवालय में रखी अन्य मूर्तियों के नीचे स्थान दिया. सुबह जब राजा देवालय में पूजा करने पहुंचे तो उन्होंने इस प्रतिमा को अन्य मूर्तियों की अपेक्षा सबसे ऊपर पाया. इसके बाद राजा ने इस प्रतिमा को परशुराम मंदिर में पहुंचा दिया. परशुराम मंदिर के पुजारी ने प्रतिमा की विलक्षणता को समझते हुए इसे नगर से दूर वरुणावत पर्वत पर स्थापित करने का सुझाव दिया.
       भूत, वर्तमान और भविष्य बताने वाले श्री कंडार देवता को संग्राली,  पाटा, खांड, गंगोरी, लक्ष्केश्वर, बाडाहाट (उत्तरकाशी), बसुंगा गांवों का रक्षक देवता माना जाता है. वरुणावत पर्वत पर संग्राली गाँव में मूल रूप से स्थापित श्री कंडार देवता के दिव्य स्वरुप के कारण आज भी वहां सदियों से चली आ रही परम्पराएँ जीवित हैं.
        संग्राली गाँव में पंडित की पोथी डॉक्टर की दवा, कोतवाल का आदेश काम नहीं आता ! यहाँ केवल कंडार देवता का आदेश ही सर्वमान्य है. ये मंदिर श्रृद्धा व आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि ऐसा न्यायालय भी है जहाँ जज, वकीलों की बहस नहीं सुनता बल्कि देवता की डोली स्वयं ही फैसला सुनाती है.
पंचायत प्रांगण में तय ग्रामीण डोली (तस्वीर में दृष्टव्य)  को कंधे पर रख कर देवता का स्मरण करते हैं और डोली डोलते हुए नुकीले अग्रभाग से जमीन में कुछ रेखाएं खींचती है इन रेखाओं के आधार पर ही फैसले, शुभ मुहूर्त आदि तय किये जाते हैं. इन रेखाओं के आधार पर जन्म कुंडली भी बनायीं जाती है.
स्थानीय निवासियों में शिव का स्वरुप माने जाने वाले कंडार देवता के प्रति इतनी अधिक श्रद्धा है कि पंडितों द्वारा जन्म कुंडली मिलान करने पर विवाह के लिए मना किये जाने पर वे विवाह देवता की आज्ञा पर तय कर जाते हैं. गाँव में बीमार होने पर पीड़ित को देवता के पास लाया जाता है, सिरदर्द, बुखार दांत दर्द आदि समस्याएँ ऐसे गायब हो जाती हैं जैसे पहले थी ही नहीं.
       श्री कंडार देवता के मूल मंदिर का स्थान संग्राली गाँव, उत्तरकाशी शहर से कुछ दूर और चढ़ाई वाले मार्ग पर है. जिले के जिलाधिकारी कार्यालय के मुख्य द्वार पर  श्री कंडार देवता का मंदिर सन 2002 में बनाये जाने के बाद अब  कंडार देवता
(Kandar Devta Temple) शहर के मुख्य स्थान पर विराजमान हैं जिससे जिले के हर क्षेत्र के आगंतुक श्रद्धालु दर्शन लाभ प्राप्त कर रहे हैं.    
       दर्शन उपरान्त मन्दिर के पुजारी जी से जानकारी लेने के उपरान्त कुछ तस्वीरें क्लिक की और होटल में भोजन करने के बाद हम अगले गंतव्य की ओर चल दिए.