चोर मीनार या “ Tower Of Thieves “ : दिल्ली
हौज़ खास क्षेत्र में मेफेयर गार्डन के पास अरविंदो मार्ग पर हौज़खास एन्क्लेव पॉश रिहायसी इलाके में हरियाली की चादर ओढ़े कलात्मक प्रतिमा व आधुनिक फव्वारे से सज्जित गोल चक्कर तो समझ आता है लेकिन गोल चक्कर पर, संरक्षित “ चोर मीनार “ !! नाम पढ़कर आपको भी आश्चर्य हो रहा होगा !!खिलजी काल (1290-1320) के दौरान चौकोर प्लेटफार्म पर ईंट गारे से बनी इस मीनार में 225 गोलाकार छिद्र हैं.
इस मीनार का हर छिद्र उस काल में, प्रजा और आक्रमणकारियों को नसीहत देने के लिए चोरी करने वाले और शत्रु के बंदी सैनिकों के सिर काट कर उस पर सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए टांग दिए जाने का आज भी मूक गवाह है। शत्रु आक्रमण के समय शत्रु सेना के कमांडरों के सिरों को मीनार पर टांग दिया जाता था, सामान्य सैनिकों के सिरों से मीनार के पास ही पिरामिड बना दिया जाता था. उस काल में ये अवश्य सुनिश्चित किया जाता था कि राज्य या कानून के प्रति प्रतिकूल व्यवहार करने वाले का सिर काटकर यहाँ सार्वजनिक रूप से अवश्य प्रदर्शित हो.
इस स्थान का इतिहास बहुत वीभत्स है कुछ इतिहासकार मानते हैं कि खिलजी ने पास की मंगोल आबादी में इसलिए नरसंहार करवाया था जिससे वे लोग पास में अपनी बिरादरी के (आज की मंगोल पुरी) में बसे मंगोल लोगों से न मिल सकें. मंगोल भारत पर आक्रमण न करें इसलिए उनमे दहशत उत्पन्न करने के लिए 8000 मंगोल सैनिकों के सिर काट कर उनको यहाँ पिरामिड के रूप में प्रदर्शित किया गया था ..
इस स्थान को देखकर तत्कालीन न्याय प्रणाली और आज की न्याय प्रणाली की देश-काल और परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक सार्थकता पर विचार मन में आते रहे !! कल्पना जगत में अनुभव करता रहा कि उस काल मे ये स्थान कितना मनहूस और भयानक माना जाता रहा होगा !! लेकिन आज ये स्थान बसावट के लोगों के मिलने का स्थान है छोटे-छोटे बच्चे यहाँ खेलते हुए दिख सकते हैं, उनको इस बात का तनिक भी आभास नहीं कि कभी इस जगह की मिटटी हमेशा मानव रक्त से सनी रहा करती होगी !!
सोचता हूँ कोई स्थान कभी मनहूस नहीं होता, मानव ही अपने कारनामों से उस स्थान को शुभ या अशुभ बनता है .. आज इस मीनार के आस-पास का इलाका मनहूस नहीं !! बल्कि दिल्ली के पॉश इलाकों में शुमार किया जाता है !!
Nice sir
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