महरौली का पुरातत्व उद्यान... दिल्ली
पर्यटक प्राय: क़ुतुब मीनार और उससे लगे स्मारकों को देख वापस कर चल देते हैं लेकिन क़ुतुब मीनार से कुछ ही दूर, महरौली का पुरातत्व उद्यान, शहर के शोरशराबे से थकी दिल्ली को अतीत के आंगन में सुकून के कुछ पल गुजारने की दावत देता है। हालंकि इस तरफ कम पर्यटक रुख करते हैं लेकिन यह पार्क इतिहास की दिलचस्प किताब जैसा है ! इसमें करीने से सजाई गई फूलों की क्यारियों, कीकर और बबूल के दरख्तों और जंगली झाड़ियों के बीच तोमरों से लेकर अंग्रेजों के जमाने तक तकरीबन 1000 बरसों की यादें बिखरी पड़ी हैं।कुतुब मीनार के दक्षिण में अणुव्रत मार्ग पर लगभग 200 एकड़ में फैले इस पार्क में 100 से ज्यादा पुरानी इमारतों के खंडहर हैं। इनमें से सिर्फ कुछ ही के बारे में पूरी जानकारी है। बाकियों की बनावट को देख कर सिर्फ उनके निर्माण के काल के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। इन खंडहरों को उस वक्त का इंतजार है जब पुरातत्वविद् उनकी पहचान को परिदृश्य पर ला सकेंगे। खंडहरों को देखकर सामान्य रिहायश, समृद्ध लोगों के घर, मुलाजिमों के आवास व बाजार का मोटा-मोटा अनुमान लगाया जा सकता है.
जानकारों के मुताबिक इस पार्क के टीलों के नीचे पहली और दूसरी दिल्ली - लालकोट और किला राय पिथौरा के अवशेष दफन हैं। 631 में अनंगपाल प्रथम द्वारा अरावली की पथरीली पहाड़ियों पर सूरज कुंड को आबाद करने के बाद तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय ने 1060 में लालकोट को अपना शक्ति केंद्र बनाया और लालकोट ही प्रथम दिल्ली कहलाता है. किला राय पिथौऱा को पृथ्वीराज चैहान ने इससे लगभग सवा सौ साल बाद बनवाया था। अलाउद्दीन खिलजी के जमाने में इस इलाके में घनी आबादी थी।
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