Monday, 29 February 2016

अतीत में जल से भरपूर दिल्ली की याद दिलाती झील : हौज़ ख़ास ( Royal Lake) : दिल्ली



अतीत में जल से भरपूर दिल्ली की याद दिलाती झील : 

हौज़ ख़ास ( Royal Lake)

      हरियाणा में आन्दोलन के चलते बाधित जल आपूर्ति के कारण दिल्ली सरकार को स्कूलों में २२ फरवरी का अवकाश घोषित करना पड़ा !! एक समय था जब दिल्ली में पानी की कोई कमी नहीं थी. दिल्ली के शासकों ने शहर में बड़े-बड़े तालाब और झील बनवाए थे. नीला हौज, हौज खास, भलस्वा और दक्षिणी दिल्ली रिज में कई बड़ी झील थीं. तब दिल्ली के तालाबों और झीलों में लबालब पानी भरा होता था जो पीने और सिंचाई के काम आता था. लेकिन आज अधिकांश झील सूखे और गन्दगी के शिकार हैं. राजस्व विभाग के दस्तावेज़ों के अनुसार राजधानी में कुल 1012 तालाब हैं। लेकिन उच्च न्यायालय में दिये हलफनामें में राज्य सरकार ने स्वीकार किया है कि राजधानी में अब केवल 629 तालाब ही सही सलामत हैं.
            आइए मूल विषय पर बात की जाए.. हौज़ ख़ास गाँव में स्थिति हौज़-ए-इलाही या हौज़ ख़ास झील की.. अल्लाउद्दीन खिलजी (1296–1316)के काल में खोदी गयी इस झील से, कुछ ही दूर अल्लाउद्दीन द्वारा बसाए शहर, सीरी (द्वितीय दिल्ली) के निवासियों की प्यास बुझती थी, बाद में फिरोजशाह तुगलक (1351–88) ने 123 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली 600 मी. चौड़ी, 700 मी. लम्बी और 14 फीट गहरी, इस झील में जमीं गाद को हटवाया और जमीन के अन्दर झील के प्राकृतिक जल संवहन तंत्र को पुनर्जीवित किया.
         1980 के बाद हौजखास गाँव के शहरीकरण व दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा क्षेत्र के व्यावसायिक क्षेत्र के रूप में विकास के समय झील में प्राकृतिक जल आपूर्ति व्यवस्था की अनदेखी की गयी जिसके कारण यह झील कई साल तक सूखी रही. हौजखास विलेज में दुकानों की संख्या बढ़ाने की होड़ में मकान ऊंचे होते जा रहे हैं जमीन सीमेंट से पटती ज रही है जिससे लाखों लीटर वर्षा का जल बिना संचयन के ही बह जाता है.
विभिन्न जल संचयन कार्यकर्ताओं ने जब दिल्ली विकास प्राधिकरण को चेताया तब प्राधिकरण की नींद खुली और भूल सुधार प्रयासों के उपरान्त आज झील में भरपूर जल है. झील के आस-पास काफी बड़े क्षेत्र में प्राकृतिक सौन्दर्य बिखरा पड़ा है झील के साथ ही डियर पार्क और डिस्ट्रिक्ट पार्क भी हैं अब काफी संख्या में देशी व विदेशी पर्यटक यहाँ के सौंदर्य के तरफ आकर्षित हो रहे हैं.
         सोचता हूँ बेशक आज दिल्ली की आबादी बढ़ गयी है लेकिन यदि उचित जल प्रबंधन की तरफ संजीदगी से ध्यान दिया जाय और सूख चुके ताल-तलैयों, कुंओं, बावडियों, झीलों की गाद हटाकर, उनके बंद हो चुके प्राकृतिक भूमिगत जल संवहन तंत्र को पुनर्जीवित किया जाय तो भूजल स्तर भी बढेगा और जल के सम्बन्ध में दिल्ली की दूसरे प्रदेशों पर निर्भरता कुछ कम अवश्य हो सकती है .. साथ ही दिल्ली के प्राकृतिक सौन्दर्य पर भी चार चाँद लग सकते हैं..



हौजखास मदरसे से झील का दृश्य 

झील में स्वच्छंद विचरण करते बत्तख 

मुंडा गुम्बद के खंडहर  : कभी ये झील के मध्य में हुआ करता था 

 


 

Saturday, 27 February 2016

अतीत में दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामिक अध्ययन केंद्र : हौजखास मदरसा




अतीत में दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामिक अध्ययन केंद्र  

हौजखास मदरसा

       बुटीक, आर्ट गैलरी, प्राचीन वस्तुओं के शो रूम की चकाचौंध लिए और विलासिता पसंद पर्यटकों, स्कूल व कॉलेज जाने वाले लड़के-लड़कियों (खासकर प्रेमी युगल) को अपनी तरफ आकर्षित करता शहरी कृत " हौज़ ख़ास विलेज ", प्राकृतिक हरियल चादर में आधुनिकता व अतीत को स्वयं में एक साथ समेटे हुए है.
         यदि आप हौजखास विलेज में स्थित अतीत की यादों को संजोये इस मदरसे से रूबरू होने के इच्छुक हैं तो पार्किंग पर वाहन खड़ा करके कुछ पैदल चलकर मदरसे के मुख्य द्वार तक पहुँच सकते हैं, यदि आप पार्किंग से लगे हौजखास परिसर के गेट से प्रवेश करते हैं तो आप मदरसे के ठीक नीचे हौजखास झील पर पहुँच जायेंगे. जहाँ से ऊपर चढ़कर मदरसे में प्रवेश कर पाना कठिन है।
          1352 में फिरोजशाह तुगलक द्वारा निर्मित ये खंडहर हो चुका मदरसा उस काल में दुनिया का सबसे बड़ा व शैक्षिक संसाधन संपन्न, आवासीय अध्ययन केंद्र हुआ करता था, फिरोजशाह तुगलक ने
अलग-अलग विषयों में ख्याति प्राप्त शिक्षकों को यहाँ नियुक्त किया था. साहित्य, कलात्मक लेखन, गणित, खगोल, औषधि, व्याकरण, कानून व इस्लामिक नियम धर्म आदि से सम्बन्धित विषयों के उच्च अध्ययन के लिए यहाँ अन्य देशों से भी शिक्षार्थी यहाँ आया करते थे. इस मदरसे के प्रथम डाइरेक्टर ज़लाल अल दीन रूमी 14 विषयों के ज्ञाता थे.
            उस काल में प्रारंभिक शिक्षा मस्जिदों आदि में प्राप्त करने के उपरान्त, सिविल सेवाओं और न्यायिक सेवाओं में जाने के इच्छुक मेधावी छात्रों के लिए उच्च अध्ययन के लिए मदरसे हुआ करते थे, इसलिए मदरसों की संख्या कम थी.
               विशाल हौजखास झील के किनारे, फिरोजशाह तुगलक के मकबरे के दोनों ओर पश्चिमी व उत्तरी भागों में एल आकृति में बने इस मदरसा-ए-फिरोजशाही में मस्जिद, तत्कालीन उस्तादों के मकबरे, प्रार्थना सभागार, बातचीत के लिए छोटे-छोटे मंडप व मुख्य ईमारत में कक्षा कक्ष निचली मंजिल में छात्रों के लिए कक्षों से झील की तरफ सीढियों वाले आवासीय कक्ष आज भी स्पष्ट दिखाई देते हैं.
         1398 में जब तैमूर लंग ने मोहम्मद शाह तुगलक को हराकर दिल्ली को लूटा तो इस स्थान पर कुछ समय डेरा डाला था.इस स्थान का वर्णन उसने अपनी आत्म कथा में किया है. इस हार के बाद मदरसे का स्वर्णिम काल समाप्त हो गया और स्थानीय गाँववासी मदरसे का उपयोग निजी कार्यों हेतु करने लगे।
हौजखास क्षेत्र में पुरातत्व विभाग के सरंक्षण में सुनियोजित तरीके से जीर्णोद्धार कार्य चल रहा है लेकिन मदरसा परिसर में खुलेआम चल रही कोल्ड और हॉट ड्रिंक पार्टियाँ से उठती दुर्गन्ध इस ऐतिहासिक परिसर में सामाजिक व वातावरणीय प्रदूषण फैला रही हैं. असामाजिक गतिविधि निषेध व्यवस्था अभाव में स्कूल और कॉलेज जाने वाले कम उम्र लड़के-लड़कियों के लिए यह स्थान सहज - सुविधाजनक - सुरक्षित एकांत मुहैय्या करवाता जान पड़ता है. जिससे यहां कभी भी अप्रिय घटना घट सकती है !!
अभिभावकों की नजरों से दूर, एकान्त में एक ओर जहां प्रेमी युगल प्रेमालाप में लीन थे वहीं एकान्त का सदुपयोग करते दो नौजवान आकर्षक युवक भी दिखे !! लेकिन वे परिदृश्य के छिछोरापन लिए फूहड़ प्रेमालाप से बेखबर अपने-अपने गिटार के साथ शालीनता से मधुर स्वरालाप में लीन थे !! बहुत अच्छा लगा।
          किसी स्थान का उपयोग या दुरुपयोग हम स्वयं ही सुनिश्चित करते हैं । सोचता हूँ बचपन से ही बच्चों में पढ़ाई के अतिरिक्त किसी अन्य कला के प्रति भी अनुराग उत्पन्न करने का प्रयास किया जाना चाहिए जिससे उनकी ऊर्जा उचित दिशा में प्रयुक्त हो सके।
         सोचता हूँ ऐतिहासिक धरोहरों के जीर्णोद्धार के साथ-साथ पुरातत्व विभाग को इन स्थानों पर सामाजिक व प्राकृतिक वातावरण को प्रदूषित करते तत्वों से सख्ती से पेश आना चाहिए जिससे हर तरह का पर्यटक ऐतिहासिक धरोहरों व वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का स्वच्छ - सुरक्षित - संस्कारप्रद माहौल में नि: संकोच आनंद ले सके।


" एल " आकार में निर्मित मदरसा...

मदरसा परिसर में मृतक उस्तादों की कब्रें


छात्रों हेतु सभागार ..

छात्रों के लिए आवासीय कक्ष

मदरसा परिसर में स्थित मस्जिद ..

मदरसे से हौज़-ए-इलाही अर्थात हौज़ ख़ास का नजारा ..
 
 
 

 
 

Wednesday, 24 February 2016

दिल्ली की प्राचीनतम बावड़ी : गंधक की बावड़ी, महरौली गाँव




 दिल्ली की प्राचीनतम बावड़ी 

गंधक की बावड़ी, महरौली गाँव

       उन्नीसवीं सदी से पूर्व बावड़ियां, कुँए और तालाब ही दिल्ली की प्यास बुझाते थे बहुत सुन्दर ढंग से बनायीं गयी इन बावड़ियों पर रौनक बस्ती थी, यदि दिल्ली को बावड़ियों का शहर भी कहा जाय तो अतिशयोक्ति न होगी. ये बावड़ियां केवल जलापूर्ति या गर्मियों में ठंडक ही प्रदान नहीं करती थी बल्कि संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग हुआ करती थी. लेकिन विकास के दौर में अधिकतर बावड़ियां घने कंक्रीट के जंगलों में गुम होकर केवल इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गयी हैं !!
     आज महरौली बस टर्मिनल के नजदीक, महरौली गाँव में तेहरवीं सदी में बनी दिल्ली की सबसे पुरानी और बड़ी बावड़ी की चर्चा की जाय...
     हालाँकि इस बावड़ी में जल स्तर अधिक होने के कारण सुरक्षा कारणों से प्रवेश निषेध है लेकिन मैं किसी तरह अन्दर पहुँच गया. इस धृष्टता हेतु सम्बंधित अधिकारियों से क्षमा चाहूँगा.
     इल्तुतमिश के शासन काल ( 1211-36) में बनी “ गंधक की बावड़ी भूस्तर से नीचे ” पांच सतही (मंजिल) है. अपने नाम को सार्थक करती इस बावड़ी के जल में गंधक की महक आती है. अत: बावड़ी का जल चरम रोगों में लाभदायक है.
      बावड़ी निर्माण के सम्बन्ध में कहा जाता है कि इल्तुतमिश जब सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी साहब से मिलने उनके पास आया तो उसे ख्वाजा साहब को पानी को लेकर होने वाली दिक्कत का पता लगा. इस समस्या के समाधान के लिए इल्तुतमिश ने ख्वाजा क़ुतुब साहब के निवास के पास इस बावड़ी का निर्माण करवाया था.
     निरंतर गिरते भूजल स्तर जल से जूझ रहे क्षेत्र में एक समय इस बावड़ी का जल सूख गया था लेकिन जल विशेषज्ञ विनोद जैन ने कानूनी लडाई लड़कर आसपास के क्षेत्र के लगभग 50 अवैध बोरवेल को सील करवाया. जमीन में सैकड़ों फुट तक गहराई तक जाने वाले बोर वैल करते समय पानी की झिरें कट जाती हैं और इनसे भारी मात्रा में पानी की अनियंत्रित निकासी के कारण आसपास के जलाशय सूख जाते हैं क्योंकि कुएं, बावड़ी और तालाब के भूमिगत स्रोत बहुत अधिक गहराई में नहीं होते हैं. 

         बावड़ियों के जीर्णोद्धार के क्रम में उनमे भरी गाद भी निकाली गयी, परिणाम स्वरुप इस पुरातत्व क्षेत्र में मौजूद गंधक की बावड़ी, का जल स्तर आज प्रथम मंजिल तक दिख रहा है .क्षेत्र के अन्य जलाशयों, राजों की बावड़ी, कुतुब बावड़ी और शम्सी तालाब में भी दशकों बाद पानी का स्तर बढ़ गया है, जिससे पर्यटकों व स्थानीय निवासियों में कौतुहल का माहौल है. भूमिगत जल स्तर बढ़ने के लिए वर्षा जल संचयन तथा अनियंत्रित भूजल निकासी पर रोक लगाने की त्वरित आवश्यकता है जिससे दिल्ली के भूजल स्तर में वृद्धि हो सके फलस्वरूप इन धरोहर बावड़ियों में पुरानी रौनक भी लौट सकेगी.
        भले ही इस बावड़ी का निर्माण सौन्दर्य दिल्ली की कुछ अन्य बावड़ियों जैसा सुन्दर न हो लेकिन सबसे अधिक जल होने के कारण मुझे ये बावड़ी सबसे सुन्दर लगी .. 

                                                   क्योंकि “ जल ही जीवन है “ ..

घात लगा बैठा है दुश्मन ..



घात लगा बैठा है दुश्मन
  मौका देख रहा अविराम !
   मत भूलो !!
अहम् और स्वार्थ के कारण
   मानवता रही सदियों तक गुलाम !!
.. विजय जयाड़ा 
 
               विद्यालय परिसर में पेड़ पर पत्तों और झाड़ियों की ओट में शिकार की तलाश में घात लगाये ये बिल्ली रोज की तरह कल भी दिखी !! रोज कबूतरों को ऐसे स्थान पर दाना देता हूँ जहाँ ये बिल्ली उनको नुकसान न पहुंचा सके. लेकिन सोचता हूँ..कब तक कबूतरों को इस बिल्ली से बचा पाऊंगा !! क्योंकि ये बिल्ली घात लगाने का स्थान बदलती रहती है !! बिल्ली का भी दोष नहीं ! प्राकृतिक रूप से हिंसक है .. अतः कबूतरों को स्वयं भी सजग रहना होगा !

अतीत और वर्तमान !!



अतीत और वर्तमान !!

      आज विद्यालयों में अवकाश घोषित हुआ तो संरक्षित विरासत क्षेत्र, " हौज़खास विलेज " पहुंच गया। कुतुब मीनार के पास से गुजरते हुए, बिना पूर्व तैयारी के अचानक "अतीत और वर्तमान", लगभग 820 वर्ष के अन्तराल को एक साथ अपने छुटके से कैमरे में समेटने का ये प्रयास किया  ! 

चोर मीनार या “ Tower Of Thieves “ : दिल्ली



  चोर मीनार या “ Tower Of Thieves “ : दिल्ली

       हौज़ खास क्षेत्र में मेफेयर गार्डन के पास अरविंदो मार्ग पर हौज़खास एन्क्लेव पॉश रिहायसी इलाके में हरियाली की चादर ओढ़े कलात्मक प्रतिमा व आधुनिक फव्वारे से सज्जित गोल चक्कर तो समझ आता है लेकिन गोल चक्कर पर, संरक्षित “ चोर मीनार “ !! नाम पढ़कर आपको भी आश्चर्य हो रहा होगा !!
खिलजी काल (1290-1320) के दौरान चौकोर प्लेटफार्म पर ईंट गारे से बनी इस मीनार में 225 गोलाकार छिद्र हैं.
        इस मीनार का हर छिद्र उस काल में, प्रजा और आक्रमणकारियों को नसीहत देने के लिए चोरी करने वाले और शत्रु के बंदी सैनिकों के सिर काट कर उस पर सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए टांग दिए जाने का आज भी मूक गवाह है। शत्रु आक्रमण के समय शत्रु सेना के कमांडरों के सिरों को मीनार पर टांग दिया जाता था, सामान्य सैनिकों के सिरों से मीनार के पास ही पिरामिड बना दिया जाता था. उस काल में ये अवश्य सुनिश्चित किया जाता था कि राज्य या कानून के प्रति प्रतिकूल व्यवहार करने वाले का सिर काटकर यहाँ सार्वजनिक रूप से अवश्य प्रदर्शित हो.
          इस स्थान का इतिहास बहुत वीभत्स है कुछ इतिहासकार मानते हैं कि खिलजी ने पास की मंगोल आबादी में इसलिए नरसंहार करवाया था जिससे वे लोग पास में अपनी बिरादरी के (आज की मंगोल पुरी) में बसे मंगोल लोगों से न मिल सकें. मंगोल भारत पर आक्रमण न करें इसलिए उनमे दहशत उत्पन्न करने के लिए 8000 मंगोल सैनिकों के सिर काट कर उनको यहाँ पिरामिड के रूप में प्रदर्शित किया गया था ..
          इस स्थान को देखकर तत्कालीन न्याय प्रणाली और आज की न्याय प्रणाली की देश-काल और परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक सार्थकता पर विचार मन में आते रहे !! कल्पना जगत में अनुभव करता रहा कि उस काल मे ये स्थान कितना मनहूस और भयानक माना जाता रहा होगा !! लेकिन आज ये स्थान बसावट के लोगों के मिलने का स्थान है छोटे-छोटे बच्चे यहाँ खेलते हुए दिख सकते हैं, उनको इस बात का तनिक भी आभास नहीं कि कभी इस जगह की मिटटी हमेशा मानव रक्त से सनी रहा करती होगी !!
          सोचता हूँ कोई स्थान कभी मनहूस नहीं होता, मानव ही अपने कारनामों से उस स्थान को शुभ या अशुभ बनता है .. आज इस मीनार के आस-पास का इलाका मनहूस नहीं !! बल्कि दिल्ली के पॉश इलाकों में शुमार किया जाता है !!


Saturday, 20 February 2016

दूसरी बार रेडियो आस्ट्रेलिया पर मेरी जुबानी ..



दूसरी बार रेडियो आस्ट्रेलिया पर मेरी जुबानी ; इतिहास के झरोखे से दिल्ली: सलीमगढ़ - स्वतंत्रता सेनानी स्मारक
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साथियों, लिंक पर क्लिक कर अवश्य सुनिएगा ... सादर ....
http://www.sbs.com.au/…/en/content/swatantrata-senani-smarak
SBS Hindi Mr Vijay Jayara is an educationist and Historical Researcher whose passion it is to visit unknown Historical monuments and neglected Historical places. He tells us about a Memorial in the Salimgarh area within the Red Fort. Soldiers from the Indian National Army had once been imprisoned there.
शिक्षाविद और ऐतिहासिक स्मारकों के शोधकर्ता श्री विजय जयाड़ा हमें जानकारी दे रहे हैं लाल किल्ला परिसर के अनजाने हिस्से सलीमगढ़ में स्थित स्वतंत्रता सैनानी स्मारक के बारे में।
http://www.sbs.com.au/…/en/content/swatantrata-senani-smarak

क्या लिखूँ !!





  क्या लिखूँ !!

  कसमसाती है कलम !
कुछ लिखूँ
        मगर ____
  लिखूँ ! मगर क्या लिखूँ !
दिन को दिन लिखूँ
  दिन को रात लिखूँ !
   सोचता हूँ क्या लिखूँ !!
बसंत को बसंत लिखूँ
पतझड़ लिखूँ ! या
   पतझड़ को बसंत लिखूँ !!
कसमसाती है कलम !
   कुछ लिखूँ !!
सच को सच या
सच को झूठ लिखूँ !
        या _____
झूठ पर सच का
मुलम्मा चढ़ा कर लिखूँ !!
    झूठ-सच___
सब मन-मस्तिष्क में
सोचता क्यों ! क्या लिखूँ !
कसमसाती है कलम !
कुछ लिखूँ ...
ना बड़बोलों की जय लिखूँ
ना अपनी ही मैं जय लिखूँ
      अगर मैं कुछ लिखूँ___
हर धड़कन में बसने वाली
       भारत मां तेरी जय लिखूँ___
   भारत भूमि की जय लिखूँ ....

.. विजय जयाड़ा 20.02.16

Tuesday, 9 February 2016

महरौली का पुरातत्व उद्यान... दिल्ली



महरौली का पुरातत्व उद्यान... दिल्ली

                 पर्यटक प्राय: क़ुतुब मीनार और उससे लगे स्मारकों को देख वापस कर चल देते हैं लेकिन क़ुतुब मीनार से कुछ ही दूर, महरौली का पुरातत्व उद्यान, शहर के शोरशराबे से थकी दिल्ली को अतीत के आंगन में सुकून के कुछ पल गुजारने की दावत देता है। हालंकि इस तरफ कम पर्यटक रुख करते हैं लेकिन यह पार्क इतिहास की दिलचस्प किताब जैसा है ! इसमें करीने से सजाई गई फूलों की क्यारियों, कीकर और बबूल के दरख्तों और जंगली झाड़ियों के बीच तोमरों से लेकर अंग्रेजों के जमाने तक तकरीबन 1000 बरसों की यादें बिखरी पड़ी हैं।
             कुतुब मीनार के दक्षिण में अणुव्रत मार्ग पर लगभग 200 एकड़ में फैले इस पार्क में 100 से ज्यादा पुरानी इमारतों के खंडहर हैं। इनमें से सिर्फ कुछ ही के बारे में पूरी जानकारी है। बाकियों की बनावट को देख कर सिर्फ उनके निर्माण के काल के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। इन खंडहरों को उस वक्त का इंतजार है जब पुरातत्वविद् उनकी पहचान को परिदृश्य पर ला सकेंगे। खंडहरों को देखकर सामान्य रिहायश, समृद्ध लोगों के घर, मुलाजिमों के आवास व बाजार का मोटा-मोटा अनुमान लगाया जा सकता है.
             जानकारों के मुताबिक इस पार्क के टीलों के नीचे पहली और दूसरी दिल्ली - लालकोट और किला राय पिथौरा के अवशेष दफन हैं। 631 में अनंगपाल प्रथम द्वारा अरावली की पथरीली पहाड़ियों पर सूरज कुंड को आबाद करने के बाद तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय ने 1060 में लालकोट को अपना शक्ति केंद्र बनाया और लालकोट ही प्रथम दिल्ली कहलाता है. किला राय पिथौऱा को पृथ्वीराज चैहान ने इससे लगभग सवा सौ साल बाद बनवाया था। अलाउद्दीन खिलजी के जमाने में इस इलाके में घनी आबादी थी।


Tuesday, 2 February 2016

महाभारत कालीन योगमाया मंदिर, महरौली, दिल्ली



महाभारत कालीन योगमाया मंदिर, महरौली, दिल्ली

             भले ही ढ़िल्लू की दिल्लिका का सफ़र लाल कोट से लगभग 1000 वर्षों का सफ़र तय करता हुआ रायसीना की पहाड़ियों पर नई दिल्ली के रूप में परिवर्तित होकर थम गया लेकिन इस दीर्घ कालावधिक यात्रा में उसने कई राजवंशों का उत्कर्ष व पराभव देखा. लगभग 5000 साल पूर्व महाभारत काल में इन्द्रप्रस्थ से प्रारंभ दिल्ली का इतिहास अनुमानों, कहानियों व श्रद्धा तक ही सीमित रहकर लाल कोट ( प्रथम दिल्ली) से पहले ही न जाने कहाँ समाप्त हो गया ! ! केवल 1100 के बाद का इतिहास ही क्रमबद्ध रूप से उपलब्ध है.
        महाभारत काल का जिक्र किया तो ये भी कहना चाहूँगा कि दिल्ली में पांच स्थान महाभारत काल से जुड़े माने जाते हैं .. योगमाया मंदिर, महरौली.. पुराना किला, कालका जी मंदिर, यमुना बाजार स्थित, मरघट वाले बाबा, हनुमान मंदिर और निगम बोध घाट.
        रविवार को बदली भरे मौसम में महरौली का रुख किया. लेकिन अबकी बार क़ुतुब मीनार से 100-150 गज की दूरी पर स्थित महाभारत कालीन योगमाया मंदिर पर पहुँच गया. मूल रूप में इस मंदिर का निर्माण, महाभारत उपरान्त पांडवों द्वारा किया गया माना जाता है. जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार इस स्थान पर रहने वाले बासिंदों की माँ योगमाया (कंस ने धोखे में कृष्ण के स्थान पर जिस कन्या को मारने की कोशिश की थी) में अटूट श्रद्धा के कारण इस स्थान को योगनीपुरा नाम से जाना गया है. कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान को परास्त करने के बाद मुहम्मद गौरी ने जिन 27 हिन्दू और जैन मंदिरों को ध्वस्त करवाया उनमे योगमाया मंदिर भी था, बाद में हिन्दू सेनापति हेमू ने पुन: इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया.
        मंदिर के गर्भ गृह में संगमरमर के छोटे कुंड में माँ योगमाया की काले पत्थर से बनी मूर्ती है. मंदिर परिसर से सटे ऊँचे आवासीय मकानों व मंदिर के नवीनीकरण के कारण मंदिर की पुरातन छवि परिदृश्यत नहीं होती. काफी खोजने के बाद भी मंदिर में कोई पुरातन अवशेष न मिल सका जिसका मुझे मलाल अवश्य रहा.. सोचता हूँ पौराणिक मंदिरों का जीर्णोद्धार इस तरह किया जाना चाहिए की उनकी पुरातन छवि बनी रहे.. उनसे उस काल की महक आती रहे.
        1812 में प्रारंभ धार्मिक सौहार्द के उत्सव, “फूल वालों की सैर” या “सैर-ए-गुल फरोशा” के कारण इस मंदिर में हिन्दू और मुस्लिम समुदाय दोनों की पहुँच है. बांटो और राज करो की नीति के अंतर्गत अंग्रेजों ने 1942 में सामाजिक सौहार्द के पर्व “फूल वालों की सैर” या सैर-ए-गुल फरोशा के आयोजन पर प्रतिबन्ध लगा दिया था जिसे पंडित नेहरु के आग्रह पर 1961 में पुन: प्रारंभ कर दिया गया. इस उत्सव में मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग मन्दिर में फूलों का पंखा चढ़ाते हैं।( फूल वालों की सैर बारे में फिर कभी )