संरक्षण की गुहार लगाती “ खजांची की हवेली “ : दरीबां, चांदनी चौक ....
1650 में शाहजहाँ की प्रिय बेटी और वास्तुकार जहाँआरा ने लाल किले से फतेहपुरी मस्जिद के बीच 1520 गज लम्बी और 40 गज चौड़ी सड़क के दोनों ओर 1560 दुकानों वाले चांदनी चौक बाजार को मूर्त रूप दिया. बाज़ार तो समय के साथ स्वरुप बदलता गया लेकिन चांदनी चौक क्षेत्र में तत्कालीन ओहदेदारों, सेठ-साहूकारों व प्रतिष्ठित लोगों की अतिक्रमण ग्रस्त और खंडहर होती तत्कालीन हवेलियाँ आज भी उनमे उस समय बसने वाली रौनक को महसूस करा सकने में सक्षम हैं.
लाल किले की तरफ से गुरुद्वारा शीशगंज साहिब से पहले बायें हाथ पर दरीबां की तरफ नुक्कड़ पर सौ साल पुरानी जलेबी की दुकान, ‘जलेबी वाला’ है. वहीँ से दरीबां की तरफ कुछ आगे चलने पर बाएं हाथ पर गली खजांची का बोर्ड लगा दिख जाता है इस तंग गली के मुख्य द्वार से लगभग 50 मी. दूरी पर सैकड़ों वर्ष पुरानी अतिक्रमण ग्रस्त व खंडहर हालत में “ खजांची की हवेली “ तक पहुंचा जा सकता है.
इस गली में मुगलकाल में शाही खजांची का निवास होने के कारण गली का नाम, ' गली खजांची ' हो गया.
कहा जाता है कि खजांची की हवेली से लाल किला तक राजकोष के धन को लाने- ले जाने की सुरक्षित व्यवस्था के मद्देनजर भूमिगत सुरंग थी जिसे बाद में लाल किला की सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए बंद कर दिया गया. खुले आसमान के नीचे मौसम की मार सहते, खँडहर हो चुकी हवेली के बचे-खुचे मेहराबों को सँभालने की कोशिश में आज भी जुटे सफ़ेद संगमरमर के स्तम्भों पर उत्कीर्ण संगतराशी के नमूने, आज भी हवेली के अतीत के वैभव को बयाँ करते जान पड़ते हैं. ताज महल के संगमरमर के जैसे पत्थर से बने सुन्दर छज्जों की जगह ईंट-गारे से निर्मित नीरस आकृतियों ने ले ली है.
साझा संपत्ति की उलझन में रख-रखाव को तरसती बेजार बूढी हो चुकी हवेली हर पहुँचने वाले से अपने संरक्षण की गुहार लगाती सी जान पड़ती है. दिल्ली नगर निगम द्वारा अधिसूचित 767 संरक्षित, संरचनाओं और भवनों की सूची में इस हवेली का शामिल न होना ! आश्चर्यजनक महसूस होता है !! इसके विपरीत निगम की सूची को चुनौती देती Intach की जिस सूची में निगम से अलहदा 738 संरचनाओं व भवनों को शामिल किया गया है उसमे ‘ खजांची की हवेली ‘ को शामिल किया गया है ! जो निगम के सम्बंधित विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिह्न है !!
सैकड़ों साल के इतिहास की गवाह चांदनी चौक को विश्व विरासत शहर घोषित करने की बात तो अक्सर की जाती है लेकिन जिन विरासतों को लेकर यह बात कही जाती है वो विरासतें दिन प्रति दिन दुकानों, व्यावसायिक व अतिक्रमण गतिविधियों के कारण समाप्त होती जा रही हैं ! पूर्व शहरी विकास मंत्री श्री जगमोहन सिंह व सांसद श्री विजय गोयल द्वारा ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण केसम्बन्ध में अच्छी पहल की गयी थी लेकिन इस सम्बन्ध में केंद्र सरकार की तरफ से त्वरित व कठोर दिशा निर्देश जारी करने की आवश्यकता है. क्योंकि कहा भी गया है कि जो अपने इतिहास को भुला देते हैं वो ज्यादा समय टिक नहीं पाते.. मिट जाते हैं !!
यहाँ बस इतना ही ! अब चलता हूँ अपने अगले गंतव्य.... हक्सर की हवेली.. की तरफ ..