Saturday, 14 May 2016

कभी मंद मंद





कभी मंद मंद
कभी उछल - उछल
बहता अविरल
निश्छल-निश्छल..
नहीं घाट बाट का
भेद कोई
ना ही अपना पराया
उसका कोई ..
जीवन मूल
   युग युगों से है
मृदुल जल निरंतर
    अविरल विमल ...
उतर उत्तुंग शिखर
भाव विह्वल
वसुधा अन्त:स्थल से
निकल-निकल
बहता निनाद कर
झल-मल कल-कल
बहता निनाद कर
     छल-छल कल-कल ....
.. विजय जयाड़ा

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