स्वतंत्रता सेनानी स्मारक ..सलीम गढ़ किला, दिल्ली
1546 में सूर वंश के सलीम शाह (शेर शाह सूरी का पुत्र) द्वारा लाल किले से पुल के माध्यम से जुड़े, जमुना के टापू पर निर्मित, सुनसान वनाच्छादित सलीम गढ़ किला आजादी के परवानों के जज्बे का मूक गवाह है. राजकीय बंदियों को बंधक रखने के इतिहास के मद्देनजर इस किले की तुलना इंग्लैण्ड के टावर ऑफ़ लन्दन से की जाती है जहाँ राजकीय बंदियों को यातनाएं दी जाती थी जिससे कई बंदी मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे.1945 से देश के आजाद होने तक 1947 तक यहाँ आजाद हिन्द फ़ौज (INA) के युद्ध बंदियों को रखा गया, जिनमें से अनेक युद्धबंदी दी गयी यातनाओं के कारण शहीद हो गए . वर्तमान में किला परिसर में तीन संग्रहालय भवन हैं जो अंग्रेजों के समय बैरक थी. तब इनको आजाद हिन्द फ़ौज के युद्धबंदियों को कैद रखने के लिए कारागार में तब्दील कर दिया गया था..
महाभारत काल से सम्बन्ध रखते, सलीम गढ़ किले का बंदीगृह के रूप में इस्तेमाल की कहानी औरंगजेब काल से प्रारंभ होती है जब उसने अपने बड़े भाई मुराद बक्श को यहाँ कैद रखा था।
कहा जाता है कि औरंगजेब की सबसे बड़ी बेटी जेबुनिशा ने छत्रपति शिवाजी से लगाव के कारण शिवाजी को फलों की टोकरी के माध्यम से अपनी पिता की कैद से निकलने में सहायता की थी. जिस कारण क्रुद्ध औरंगजेब ने जेबुनिशा को ताउम्र सलीम गढ़ में कैद रखा. (सन्दर्भ - Royal Mughal Ladies and Their Contributions-. By Soma Mukherjee)
1857 के स्वतंत्रता आन्दोलन में बहादुर शाह जफ़र इस किले की दीवारों पर चढ़कर अपने सैनिकों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ कार्यवाही को देखता था. निर्वासित हुमायूँ ने अपना राज्य पुन: प्राप्ति के क्रम में इस किले में तीन दिन डेरा जमाये रखा और लाल किला तैयार होने से पूर्व शाहजहाँ ने कुछ समय यहाँ निवास किया था.
कही – सुनी कहानियों के अनुसार चांदनी रात में जेबुनिशा काले गाउन में अपनी लिखी कविताओं को पढ़ती देखी गयी है यह भी कहा जाता है कि परिसर में यातनाओं के कारण मृत्यु को प्राप्त सैनिकों की चीखें और कराहने की आवाजें भी सुनी गयी हैं ..
आजाद हिन्द फ़ौज के शहीद युद्धबंदियों की याद में सलीम गढ़ किले का नाम बदल कर स्वतंत्रता सेनानी स्मारक कर दिया गया, जहाँ INA से सम्बंधित सामग्री का ऐतिहासिक संग्रहालय है, लेकिन विडंबना ही कहूँगा रोज हजारों पर्यटक लाल किला देखकर वापस चले जाते हैं .. लेकिन गिनती के ही पर्यटक इधर का रुख करते हैं !! मुझे एक भी पर्यटक परिसर में नहीं दिखाई दिया !!
सोचता हूँ कि बच्चों को शॉपिंग मॉल और मनोरंजन पार्कों की चमक-धमक दिखाने के साथ-साथ स्वतंत्रता सैनानियों के पर्यटकों से उपेक्षित इन तीर्थों को दिखाने के लिए भी समय निकाला जाना चाहिए।
जय हिन्द .. वन्देमातरम.. के नारों में वास्तविक देशप्रेम के भाव तभी उमड़ सकते हैं जब हम पूर्वजों द्वारा देश की आजादी के लिए दी गयी कुर्बानी को किसी न किसी रूप में सुनें ... प्रत्यक्ष उसके निशान देखें.. उस काल खंड में खोकर कुछ अनुभूत करें... नहीं तो ये भावरहित कोरे नारे ही साबित होंगे !!