Saturday, 31 October 2015

पांडव कालीन दूधिया भैरव बाबा मंदिर, पुराना किला,दिल्ली





हमारे श्रद्धा व विश्वास के स्थल

पांडव कालीन दूधिया भैरव बाबा मंदिर, पुराना किला,दिल्ली 

        धर्मपत्नी कई दिनों से पुराना किला, भैरव मंदिर दर्शन को कह रही थी, आज पुन: आग्रह किया तो टाल न सका. दरअसल मुझे मंदिरों में में भीड़ और धक्का-मुक्की से परहेज है इसी कारण पर्व के दिनों में मंदिर नहीं जाता. सोचता हूँ ईश्वर तो कण-कण में व्याप्त है यदि विशेष महातम्य के कारण किसी स्थान विशेष को किसी देवी या देवता से जुड़ गया है तो वहां पर, किसी दिन विशेष की अपेक्षा, देवता का सदैव वास होना चाहिए. खैर, ये तो व्यक्तिगत श्रद्धा का विषय है लेकिन मैं श्रद्धा के साथ स्थान की प्राचीनता व इतिहास के सम्बन्ध में भी रूचि रखता हूँ.
      पिछली बार जब आपसे, पुराना किला की बाहरी दीवार से लगे, “ पांडव कालीन किलकारी भैरव बाबा मंदिर “ के सम्बन्ध में जानकारी साझा की थी तब इस मंदिर से 100 मी. की दूरी पर बने “ पांडव कालीन दूधिया भैरव बाबा “ मंदिर की जानकारी भी साझा करने का वादा किया था, आज मौका मिला तो दूधिया भैरव बाबा मंदिर दर्शन को चल पड़ा .
     सामान्यत: यह माना जाता है कि भैरव बाबा, फल-फूल से नहीं बल्कि मदिरा से ही प्रसन्न होते हैं और इस मान्यता के चलते देश के विभिन्न प्रसिद्द भैरव मंदिरों के साथ-साथ “ पांडव कालीन किलकारी भैरव बाबा मंदिर “, पुराना किला, दिल्ली में भी भोग के रूप में मदिरा चढ़ाई जाती है, लेकिन सात्विक श्रद्धालु “ पांडव कालीन दूधिया भैरव बाबा मंदिर “ में भैरव बाबा को कच्चे दूध व गुड़ का भोग लगाकर बाबा को प्रसन्न करते हैं. हालांकि “ पांडव कालीन किलकारी भैरव बाबा मंदिर “ की अपेक्षा, एकदम समीप होने के बावजूद भी श्रद्धालुओं का इस मंदिर की तरफ कम रुझान है.
       भैरव बाबा को दूध का भोग लगाये जाने वाले देश के एकमात्र प्राचीन मंदिर की कथा महाभारत से जुडी है. महाभारत काल से जुड़े होने के बावजूद, सलीम गढ़ किले से मिले कुछ मिटटी के बरतन अतिरिक्त दिल्ली में उस काल के अवशेष विद्यमान नहीं हैं लेकिन पुराना किला को महाभारत काल से जोड़कर देखा जाता है और “पांडवों का किला” भी कहा जाता है. 

         कहा जाता है कि महाभारत प्रारंभ होने से पूर्व कुंती ने स्वयं यहाँ आकर बाबा को दूध चढ़ा कर,दूध की लाज रखने के बदले में पांडवों की विजय व कुशलता की गुहार लगाई थी. बाबा ने कुंती को निराश नहीं किया और पांडवों की विजय व कुशलता का आशीर्वाद दे दिया ..माना जाता है कि तभी से यहाँ दूध का भोग लगाया जाता है. चढ़ाया गया दूध प्रसाद के रूप में कौवों को पिलाया जाता है आश्चर्य की बात ये है कि मांसाहारी कौवे ये दूध पीते हैं, जिसे मन्नत पूर्ण होने का लक्षण भी माना जाता है.
आज की विशेषता ये भी रही कि पहली बार धर्मपत्नी ने ही छायांकन कार्य किया .. 31.10.15


Monday, 19 October 2015

कलियुग में नंदी महाराज




कलियुग में नंदी महाराज

            कहा जाता है एक बार रावण को अपनी शक्ति पर इतना घमंड हुआ कि अपनी शक्ति आजमाने के लिए रावण ने कैलाश पर्वत को ही उठा कर शिव निवास को असंतुलित कर हलचल मचा दी !!
           शिव अनुगामी नंदी महाराज को रावण की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने रावण के हाथ को अपने पैर से इतने जोर से दबाया कि रावण त्राहिमाम चिल्लाने लगा !!
           नंदी महाराज ने तब तक रावण के हाथ को दबाये रखा जब तक वह शिव शरणागत होकर शिव आराधना में लीन नहीं हो गया.
          तब तो एक रावण ने एक शिखर कैलाश को उठाने का दुस्साहस कर अनिष्ट को निमंत्रण दिया था लेकिन अब तो कई रावण मिलकर पूरी दुनिया में समाज के विभिन्न शिखरों को उठाकर, दुनिया को असंतुलित कर के हलचल मचाने का काम कर रहे हैं !!
             नि:संदेह !! कलियुग में नंदी महाराज का काम भी काफी व्यस्ततापूर्ण व कठिन हो गया होगा !
क्यों न हम भी अपने स्तर पर नंदी महाराज के काम में सहयोग कर शिव कृपा के भागी बनें !!
    भव्य रूप में नंदी महाराज का दर्शन सुख मिला तो भला श्री सानिध्य में फोटो क्लिक करवाने का लोभ संभरण कैसे कर सकता था ..


Sunday, 18 October 2015

परमार्थ निकेतन आश्रम, ऋषिकेश



              
              हिमालय की गोद में गंगा के किनारे सन 1942 में संत सुखदेवानंद महाराज जी द्वारा स्थापित व श्रद्धालुओं के निवास हेतु 1000 से अधिक कमरों को स्वयं में समाहित किये हुए, ऋषिकेश का सबसे बड़ा आश्रम," परमार्थ निकेतन आश्रम ", प्रभात की सामूहिक पूजा, योग एवं ध्यान, सत्संग, व्याख्यान, कीर्तन, सूर्यास्त के समय गंगा-आरती आदि से धर्म क्षेत्र में सेवारत है. आश्रम को देखकर मन-मस्तिष्क में अपूर्व शान्ति के साथ-साथ कबीर दास जी का ये दोहा उभर आया ..
स्वारथ सुखा लाकड़ा, छाँह बिहूना सूल |
पीपल परमारथ भजो, सुखसागर को मूल ||
.. संत कबीर
स्वार्थ में आसक्ति तो बिना छाया के सूखी लकड़ी है और सदैव संताप देने वाली है और परमार्थ तो पीपल - वृक्ष के समान छायादार सुख का समुद्र एवं कल्याण की जड़ है, अतः परमार्थ को अपना कर उसी रास्ते पर चलो.
 
 

Thursday, 1 October 2015

आध्यात्म व प्रकृति का अनूठा संगम ; "झिलमिल गुफा " ऋषिकेश



आध्यात्म व प्रकृति का अनूठा संगम 

 "झिलमिल गुफा " ऋषिकेश

         ऋषिकेश , मणिकूट पर्वत स्थित , प्रसिद्ध नीलकंठ महादेव मंदिर से सभी परिचित हैं. यदि लक्ष्मण झूला से चलें तो नीलकंठ मंदिर पहुँचने से करीब आधा किमी पहले बायीं तरफ एक सड़क निकलती है उस पर 4-5 किमी कार या बाईक से चलने और फिर लगभग आधा घंटा पैदल चलने पर आप इन गुफाओं से साक्षात्कार कर सकते हैं.
       मणिकूट पर्वत, कदली वन की इन गुफाओं में “ झिलमिल गुफा “ जिसका नाम झिलमिल बाबा द्वारा यहाँ तपस्या करने के कारण पड़ा, मुख्य आकर्षण का केंद्र है. पैदल मार्ग प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है लेकिन जंगल से होकर है. जल अवक्षेपित खनिजों से प्राकृतिक रूप से बनी यह गुफा कुदरत की अप्रतिम चित्रकारी जान पड़ती है जल प्रवाह के साथ आये खनिजों के अवक्षेपण से गुफा का आतंरिक भाग दृष्यांकित सा लगता है गुफा की छत, छिद्र्नुमा खुली है जो वायु के सुचारू आवागमन को सुनिश्चित करती है, इस छिद्र से रात्री समय में बादल रहित आसमान में तारों को निहारने का अपूर्व आनंद प्राप्त होता है.
       प्राचीन समय में ऋषि मुनि निर्विघ्न तपस्या हेतु हिमालय में निर्जन स्थान व गुफाओं का चयन करते थे. गुरु गोरख नाथ जी द्वारा इस गुफा में तपस्या किये जाने के कारण यह तपस्या गोरखनाथ जी को समर्पित है, गुफा में उनकी मूर्ती है और कुछ सन्यासी रहते हैं.
         धार्मिक भावना से हर श्रृद्धालु नीलकंठ मंदिर जाना चाहता है लेकिन ये गुफा भी कम पवित्र नहीं .. साथ ही यहाँ प्रकृति और आध्यात्म के संगम स्नान से हम स्वयं को हल्का अवश्य महसूस कर सकते हैं.
मार्ग में चाय-पान की अस्थायी दुकानें व रात्री विश्राम के लिए सस्ती व्यवस्था है. यदि मुझे ज्ञात होता कि यहाँ रात रुकने की व्यवस्था है तो शोरगुल से दूर अनुपम प्रकृति के सानिध्य में एक रात अवश्य बिताता .. यदि आप ऋषिकेश, नीलकंठ मंदिर दर्शन करना चाहते हैं तो “ झिलमिल गुफा “ भी अवश्य जाइयेगा .. यहाँ से आगे पांच मिनट पैदल चलकर आप गणेश गुफा के दर्शन भी कर सकते हैं..
     जानकारी के अभाव में नीलकंठ आने वाले यात्रियों में से बामुश्किल 4-5 % यात्री यहाँ आ पाता है। 

स्वातंत्र्य वीर धाम ; “ स्वतंत्रता सेनानी स्मारक “ सलीमगढ़, लाल किला



स्वातंत्र्य वीर धाम

“ स्वतंत्रता सेनानी स्मारक “ सलीमगढ़, लाल किला


      ऐतिहासिक स्थल हमें उचित और अनुचित का बोध कराते हैं, इन स्थलों पर पहुंचकर हम यहाँ की प्राचीनता, वैभव, वास्तु, स्थापत्य तत्कालीन व्यवस्था, सम्बंधित तथ्यों व घटनाओं को देख-जान कर आश्चर्यचकित हो जाते हैं, लेकिन ये भी सत्य है कि इन स्थलों में हम अक्सर अपनापन अवश्य तलाशते हैं अर्थात ऐसा कुछ जिस पर हमें गर्व हो.
      आइये, आज ऐसे ही गुमनाम ऐतिहासिक स्थल पर चलते हैं जहाँ की प्राणवायु आपके हृदयतल को झंकृत कर देगी और ह्रदय का हर स्पंदन, जोश व गर्व से गुन-गुनाने को मजबूर कर देगा ..
“ कदम-कदम बढ़ाये जा ... ख़ुशी के गीत गाये जा ...”
       और कदम से कदम मिलाती आजाद हिन्द फौज के जांबाज सिपाहियों की टुकड़ी से सलामी लेते नेता जी सुभाष चंद्र बोस का दृश्य मानस पटल पर बरबस ही उभर आयेगा !!
       जी हाँ.. आज आजाद हिन्द फ़ौज (INA) के स्वातंत्र्य वीरों को समर्पित “ स्वतंत्रता सेनानी स्मारक “ सलीमगढ़, लाल किला की ही बात कर रहा हूँ. लेकिन यह बताने में दुःख होता है कि आजादी के लिए यातनाएं सहने वाले और हँसते-हँसते फांसी के फंदे को स्वीकारने वाले, हमारे वर्तमान के लिए अपना भविष्य दाँव पर लगाने वाले स्वातंत्र्य वीरों के इस धाम की चमक, लाल किला की मुग़ल कालीन भव्य इमारतों की चकाचौंध में धूमिल होती जान पड़ती है. लाल किला में लगभग 10 हजार पर्यटक हर रोज आता है लेकिन यहाँ शायद 10 पर्यटक भी नहीं पहुँचते !!
       1546 में सूर वंश के सलीम शाह द्वारा बनवाया गया सलीमगढ़ किला, लाल किले के उत्तरी पूर्वी छोर से एक छोटे से मेहराबदार सेतु द्वारा लाल किले से जुड़ा है. मुग़ल काल में इस किले को राजकीय बंदियों को रखने में इस्तेमाल किया जाता था.यह लाल किला परिसर का ही भाग है औरंगजेब ने मुराद बक्श को और साहित्य,संगीत व काव्य प्रेम के कारण बड़ी बेटी जेबुनिशा को 21 वर्ष, मृत्यु तक यहीं कैद रखा था. हुमायूँ ने निर्वासन उपरांत दिल्ली पर दुबारा अधिकार के क्रम में यहाँ तीन दिन डेरा जमाये रखा. 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध रणनीति बनाने के लिए बादशाह बहादुर शाह जफ़र यहाँ मीटिंग करते थे और इस किले की दीवार पर चढ़कर अपनी तोपों को अंग्रेजों पर निशाना साधते देखते थे. रंगून निर्वासन से पूर्व बदनसीब बादशाह जफ़र को कुछ समय यहाँ कैद रखा गया.
       1945 में यहाँ आजाद हिन्द फ़ौज के सिपाहियों व अधिकारियों को मुग़ल काल में बनाये गयी इन दमघोटू (तस्वीर में) कोठरियों में बंदी बनाकर रख कर उन पर देश द्रोह का मुकदमा चलाया गया. भीषण यातनाओं व बीमारी के चलते कई स्वातंत्र्य वीर वीरगति को प्राप्त हुए. 1995 में इस स्थल को “ स्वतंत्रता सेनानी स्मारक “ घोषित कर दिया गया. उस समय बंदीगृह के रूप में प्रयोग की जाने वाली दो बैरक आज संग्रहालय के रूप विकसित की गयी हैं. यह क्षेत्र वनाच्छादित व सुनसान है मेरे जैसा जिज्ञासु ही शायद कोई यहाँ पहुँचता हो. शायद !!! सामान्यजन निर्जनता के कारण ही सुरक्षाकर्मी, मुझे और मेरे साथी को बहुत गौर से खोजी निगाहों से देख रहे थे !! बंदीगृह में ढेर सारे चमगादड़ों का साम्राज्य दिखा..
       कहा जाता है कि चांदनी रात में काला गाउन पहले मुग़ल शहजादी जेबुनिशा की प्रेतात्मा स्वलिखित कवितायेँ गाती देखी जाती है और आजाद हिन्द फ़ौज के बंदी सैनिकों की यातनाओं के दौरान चीखें व कराह आज भी इस निर्जन सुनसान वातावरण के सन्नाटे को तोड़ती सुनी जाती हैं.
            यदि आप लाल किले में अपनापन तलाश रहे हैं तो मुग़ल कालीन भवनों को निहारने से पहले छत्ता बाजार पार करते ही नौबत खाने से पहले बाएं हाथ की तरफ, लाल किला बावड़ी व सलीम गढ़ किले की तरफ निर्जन क्षेत्र की ओर मुड़ जाइए. स्वातंत्र्यवीर निर्जनता में आपको पाकर प्रसन्न होंगे और देशप्रेम का आशीर्वाद अवश्य देंगे ...वापसी में बेशक लाल किले के मुग़ल कालीन वैभव को निहारना न भूलियेगा ..