Wednesday 6 July 2016

महरौली पुरातत्विक उद्यान : बलबन का मकबरा, दिल्ली ... (Archaeological Park Mehrauli.. Balban's Tomb, Delhi )




महरौली पुरातत्विक उद्यान : बलबन का मकबरा, दिल्ली  ... (Archaeological Park Mehrauli.. Balban's Tomb, Delhi ) 

       इतिहास में  क्रूर, धार्मिक, रंगीला,मस्त-मौला, शालीन, विद्वत, अनुशासन पसंद आदि जैसे अलग-अलग मिजाज के बादशाह हुए  .. कमोवेश जीवन पर्यंत उनका वही मिजाज कायम रहता था .. प्रशासन चलाने का सबका अपना अलग ढंग और अपनी अलग तरह की प्रशासनिक व्यवस्था होती थी. अर्थात हर बादशाह पहले वाले से कुछ अलग होता था. अब तो सिर्फ चेहरे और मोहरे बदलते हैं व्यवस्था वही रहती है, विपक्ष के रूप में गरजते-बरसते नेता गण सत्ता प्राप्त होते ही गहन मौन साध लेते हैं !!
खैर ! महरौली पुरातत्विक उद्यान में जिस जगह मैं खड़ा हूँ इस स्थान पर इल्तुतमिश के तुर्क गुलाम को लगातार 22 वर्षों, (1266 AD to 1287 AD) तक शासन करने के बाद 87 साल की उम्र में, भारत में पहली बार इंडो-इस्लामिक शैली में निर्मित मेहराबदार मकबरे (Tomb) में चिर निद्रा में लिटा दिया गया था.
     जी हाँ, आप समझ ही गए होंगे मैं सैन्य विभाग को पहली बार स्थापित करने वाले गयासुद्दीन बलबन (1200 AD – 1287 AD) के मकबरे के पास खड़ा हूँ. , प्रशासकीय समय हो या निजी !! हर वक्त अपनी वेशभूषा के प्रति बहुत संजीदा रहने वाला, बलबन ! महरौली पुरातत्विक उद्यान के सुनसान, निर्जन में खुले आसमान के नीचे  लम्बी घास, कंटीली झाड़ियों के साथ, पत्थर, गारे और चूने से निर्मित ऊंची-ऊंची-मोटी वक्त के थपेड़ों से ढहती हुई दीवारों के बीच कब्र में चिर मौन है !! 
       बलबन के दरबार में कठोर अनुशासन था. दरबारी घुटने जमीन पर लगाकर अपने माथे से जमीन को छूकर सुल्तान को अदब फरमाते थे. किसी दरबारी की क्या मजाल ! कि दरबार में हंसने या मुस्कराने की हिमाकत कर कर सके !!  अपने निजाम को दुश्मन से सुरक्षित रखने और प्रजा की राज्य के प्रति वफादारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बलबन ने एक मजबूत और संगठित जासूसी तंत्र स्थापित किया हुआ था. न्याय के मामले में अपने सगे को भी नहीं बख्शता था ..
      बलबन काल में किसी में भी नौकर या गुलाम पर अत्याचार करने की हिम्मत न थी.  हर महकमे व राज्य के विभिन्न भागों में गुप्त सूचना देने वाले और समाचार लेखक नियुक्त किये गए थे.
       एक बार मिली शिकायत के अनुसार बदायूं के बड़े साहूकार मलिक बरबक द्वारा अपने नौकर की हत्या करने पर बलबन ने साहूकार को तो मौत की सजा दी ही लेकिन साथ ही जासूसी रिपोर्टर द्वारा समय पर सूचना न देने को सुल्तान के प्रति अपराध ठहराते हुए बदायूं क्षेत्र के जासूसी से सम्बंधित रिपोर्टर को भी मृत्यु दंड दे दिया..
        हर बादशाह में कुछ कमियाँ भी थी तो कुछ खूबियाँ भी !
बहरहाल !! बलबन काल और आधुनिक प्रशासन व्यवस्था में मीडिया और जासूसी तंत्र के राज्य द्वारा उपयोग के सम्बन्ध में कुछ तुलना तो की ही जा सकती है ..




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